लोगों की ओर जल कर गिरते, बिखेरते आतिशो ने,
रावण से पूछा ये क्या कर डाला?
जवाब मिला –
तुम सब युगों-युगों से जला रहे है मुझे।
मैंने भी वही किया, तो बुरा क्यों मान गए?
सामने राम तो नज़र आए नहीं कहीं।
पर छुपे थे कईयों के अंदर अंश हमारे, कई रावण।

लोगों की ओर जल कर गिरते, बिखेरते आतिशो ने,
रावण से पूछा ये क्या कर डाला?
जवाब मिला –
तुम सब युगों-युगों से जला रहे है मुझे।
मैंने भी वही किया, तो बुरा क्यों मान गए?
सामने राम तो नज़र आए नहीं कहीं।
पर छुपे थे कईयों के अंदर अंश हमारे, कई रावण।

सदियाँ और युग बीते,
रावण कभी नहीं मरा।
था अति विद्वान।
पर जीत नहीं सका अहंकार अपना।
विजया और रावण दहन सीख है,
जीत सको तो जीत लो अहंकार अपना।
ना रखो कई चेहरे,
दुनिया में कई चेहरे वाले कई रावण है,
इसलिये राम याद आतें हैं।

The world celebrates this day to mark the importance of teachers. It is commemorated each year on the anniversary of the ILO/UNESCO Recommendation adoption regarding the Status of Teachers in 1966. Theme for 2022 was “Teachers at the heart of education recovery.”
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे
प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को?
ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम
है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन
करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

तीखी धूप साये की याद दिलाती है
सर्द साया धूप-ए-आफ़ताब
की याद दिलाता है।
वक़्त वक़्त की बात है।
बहाव-ए-वक्त रोज़ नये सबक़ सीखता है
ज़िंदगी के नए रंग दिखाता है।
दहलीज़ पर जलता दीया,
पाथेय बन राहें
उनके लिए रौशन है करता,
जिन्हें वापस आना हो।
ज़ो लौटें हीं ना
उनके लिए क्यों दीया जलाना
रात की दहलीज़ पर?

थे राधा बनने की चाह में।
कई नज़रें उठी,
सिर्फ़ लालसा भरी चाह में।
माँगा इश्क़ भरी नज़रें,
मिला बदन भर चाह।
समझ ना आया, तह-दर-तह
तह-ए-इश्क़ में सच्चा कौन, झूठा कौन?
और हर इल्ज़ाम इश्क़ पर आया।
पर कृष्ण ना मिले।
महादुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!

बँटवारा हो तब
ख़ुशियाँ तुम रख लो,
ग़म मेरे पास रहने दो।
अपने हिस्से की ख़ुशियाँ हम
ख़ुद रचेंगे, ख़ुद कमाएँगे।
अभी थोड़ी ख़ुशियाँ दे दो मुझे भी।
दुनिया को तुमसे मिले विरासत दिखाने के लिए।
चेहरे पर मुस्कान की मास्क लगा दुनिया
के सामने जाने के लिए।
बस इतनी सी है, तेरी मेरी कहानी।

topic by – yourQuote
उम्र-ए-रफ़्ता ना लौटे,
क्या फ़र्क़ है पड़ता?
उजालों का भी समय है ढलता।
सूरज भी है ढलता।
बस ज़िंदगी ख़ूबसूरत
और हो सुकून भरी।
यही है कामना।
उम्र-ए-रफ़्ता ना लौटे,
क्या फ़र्क़ है पड़ता?
The UN is marking IDOP by encouraging
countries to draw attention to and
challenge negative stereotypes and
misconceptions about older persons
and ageing, and to enable older persons
to realize their potential.
2022 Theme:Resilience of Older Persons
in a Changing World
