क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः |
आसाम का गौहाटी शहर विख्यात कामख्या मंदिर के लिए जाना जाता है। यह एक शक्ति पीठ है। यह मंदिर वर्तमान कामरूप जिला में स्थित है। माँ कामख्या आदिशक्ति और शक्तिशाली तांत्रिक देवी के रूप में जानी जाती हैं। इन्हे माँ काली और तारा का मिश्रित रूप माना जाता है। इनकी साधना को कौल या शक्ति मार्ग कहा जाता है। यहाँ साधू-संत, अघोरी विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं।
आसाम को प्राचीन समय में कामरूप देश या कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना जाता था। यह तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता थी कि कामरूप- कामाख्या के सिद्ध लोग मनमोहिनी मंत्र तथा वशीकरण मंत्र आदि जानते है। जिस के प्रभाव से किसी को भी मोहित या वशीभूत कर सकते थे।
वशीकरण मंत्र —
ॐ नमो कामाक्षी देवी आमुकी मे वंशम कुरुकुरु स्वाहा|
गौहाटी सड़क मार्ग, रेल और वायुयान से पहुँचा जा सकता है। गौहाटी के पश्चिम में निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत पर यह मंदिर स्थित है। यह समुद्र से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर है। गौहाटी शहर से मंदिर आठ किलोमीटर की दूरी पर पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक सड़क मार्ग है।
वास्तु शिल्प – ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में हुआ था। तब से 17वीं सदी तक अनेकों बार पुनर्निर्माण होता रहा। मंदिर आज जिस रूप में मौजूद है। उसे 17वीं सदी में कुच बिहार के राजा नर नारायण ने पुनर्निमित करवाया था। मंदिर के वास्तु शिल्प को निलांचल प्रकार माना जाता है। मंदिर का निर्माण लंबाई में है। इसमें पूर्व से पश्चिम, चार कक्ष बने हैं। जिसमें एक गर्भगृह तथा तीन अन्य कक्ष हैं।
ये कक्ष और मंदिर बड़े-बड़े शिला खंडों से निर्मित है तथा मोटे-मोटे, ऊँचे स्तंभों पर टिकें हैं। मंदिर की दीवारों पर अनेकों आकृतियाँ निर्मित हैं। मंदिर के अंदर की दीवारें वक्त के थपेड़ों और अगरबत्तियों के धुएँ से काली पड़ चुकी हैं। तीन कक्षों से गुजर कर गर्भ गृह का मार्ग है। मंदिर का गर्भ -गृह जमीन की सतह से नीचे है। पत्थर की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक छोटी प्रकृतिक गुफा के रूप में मंदिर का गर्भ-गृह है। यहाँ की दीवारें और ऊंची छतें अंधेरे में डूबी कालिमायुक्त है।
इस मंदिर में देवी की प्रतिमा नहीं है। वरन पत्थर पर योनि आकृति है। यहाँ पर साथ में एक छोटा प्रकृतिक झरना है। यह प्रकृतिक जल श्रोत इस आकृति को गीली रखती है। माँ कामाख्या का पूजन स्थल पुष्प, सिंदूर और चुनरी से ढका होता है। उसके पास के स्थल/ पीठ को स्पर्श कर, वहाँ के जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
उसके बगल में माँ लक्ष्मी तथा माँ सरस्वती का स्थान/ पीठ है। यहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते हैं। गर्भगृह से ऊपर, बाहर आने पर सामने अन्नपूर्णा कक्ष है। जहाँ भोग प्रसाद बनता है। मंदिर के बाहर के पत्थरों पर विभिन्न सुंदर आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर का शिखर गोलाकार है। यह शिखर मधुमक्खी के गोल छत्ते के समान बना है।
बाहर निकाल कर अगरबत्ती व दीपक जलाने का स्थान बना है। थोड़ा आगे नारियाल तोड़ने का स्थान भी निर्दिष्ट है। पास के एक वृक्ष पर लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए धागा लपेटते हैं। मंदिर परिसार में अनेक बंदर है। जो हमेशा प्रसाद झपटने के लिए तैयार रहते है। अतः इनसे सावधान रहने की जरूरत है।
किंवदंतियां- मंदिर और देवी से संबंधित इस जगह की उत्पत्ति और महत्व पर कई किंवदंतियां हैं।
1) एक प्रसिद्ध कथा शक्तिपीठ से संबंधित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ सती की योनि गिरी थी। जो सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति का प्रतीक है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। सती के पिता ने विराट यज्ञ का आयोजन किया। पर यज्ञ के लिए शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया था। फलतः सती ने अपमानित महसूस किया और सती ने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।
इस से व्यथित, विछिप्त शिव ने यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठा लिया। सती के मृत शरीर को ले कर वे अशांत भटकने लगे। शिव सति के मृत देह को अपने कन्धे पर उठा ताण्डव नृत्य करने लगे। फ़लस्वरुप पृथ्वी विध्वंस होने लगी। समस्त देवता डर कर ब्रम्हा और विष्णु के पास गये और उनसे समस्त संसार के रक्षा की प्रार्थन की। विष्णु ने शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने चक्र से सती के मृत शरीर के खंडित कर दिया। फलतः सती के शरीर के अंग भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानों पर गिर गए। शरीर के अंग जहां भी गिरे उन स्थानों पर विभिन्न रूपों में देवी की पूजा के केंद्र बन गए और शक्तिपीठ कहलाए। ऐसे 51 पवित्र शक्तिपीठ हैं। कामाख्या उनमें से एक है। संस्कृत में रचित कलिका पुराण के अनुसार कामाख्या देवी सारी मनोकामनाओं को पूरा करनेवाली और मुक्ति दात्री शिव वधू हैं।
कामाक्षे काम सम्मपने कमेश्वरी हरी प्रिया,
कामनाम देही मे नित्यम कामेश्वरी नामोस्तुते||
अंबुवासी पूजा- मान्यता है कि आषाढ़ / जून माह में देवी तीन दिन मासिक धर्म अवस्था में होती हैं। अतः मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन मंदिर सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति के उपासना उत्सव के रूप में धूम धाम से खुलता है।मान्यता है कि इस समय कामाख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है।
2) एक अन्य किवदंती के अनुसार असुर नरका कमख्या देवी से विवाह करना चाहता था। देवी ने नरकासुर को एक अति कठिन कार्य सौपते हुए कहा कि अगर वह एक रात्रि में निलांचल पर्वत पर उनका एक मंदिर बना दे तथा वहाँ तक सीढियों का निर्माण कर दे। तब वे उससे विवाह के लिए तैयार हैं। दरअसल किसी देवी का दानव से विवाह असंभव था। अतः देवी ने यह कठिन शर्त रखी। पर नरकासुर द्वारा इस असंभव कार्य को लगभग पूरा करते देख देवी घबरा गई। तब देवी ने मुर्गे के असमय बाग से उसे भ्रमित कर दिया। नरकासुर ने समझा सवेरा हो गया है और उसने निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया और शर्त हार गया। नरकासुर द्वारा बना अधूरा मार्ग आज मेखला पथ के रूप में जाना जाता है।
3)एक मान्यता यह भी है कि निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत शिव और सती का प्रेमस्थल है। देवी कामाख्या सृष्टि, जीवन रचना और प्रेम की देवी है और यह उनका प्रेम / काम का स्थान रहा है। अतः इस कामाख्या कहा गया है।
4) एक कहानी के अनुसार कामदेव श्राप ग्रस्त हो कर अपनी समस्त काम शक्ति खो बैठे। तब वे इस स्थान पर देवी के गर्भ से पुनः उत्पन्न हो शापमुक्त हुए।
5)एक कथा संसार के रचनाकार और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा से संबन्धित है। इस कहानी के अनुसार देवी कामाख्या ने एक बार ब्रह्मा से पूछा कि क्या वे शरीर के बिना जीवन रचना कर सकते हैं। ब्रह्मा ने एक ज्योति पुंज उत्पन्न किया। जिसके मध्य में योनि आकृति थी। यह ज्योति पुंज जहाँ स्थापित हुई उस स्थान को कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना गया।
6) एक अन्य मान्यतानुसार माँ काली के दस अवतार अर्थात दस महाविद्या देवी इसी पर्वत पर स्थित है। इसलिए यह साधना और सिद्धी के लिए उपयुक्त शक्तिशाली स्थान माना जाता है। ये दस महाविद्या देवियाँ निम्नलिखित हैं– भुवनेश्वरी, बगलामुखी, छिन्मस्ता, त्रिपुरसुंदरी, तारा, घंटकर्ण, भैरवी, धूमवती, मातांगी व कमला।
कामख्ये वरदे देवी नीलपर्वतवासिनी,
त्वं देवी जगत्म मातर्योनिमुद्रे नामोस्तुते ||
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