रात की दहलीज़ पर

दहलीज़ पर जलता दीया,

पाथेय बन राहें

उनके लिए रौशन है करता,

जिन्हें वापस आना हो।

ज़ो लौटें हीं ना

उनके लिए क्यों दीया जलाना

रात की दहलीज़ पर?

तह-ए-इश्क़ (महादुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं)

थे राधा बनने की चाह में।

कई नज़रें उठी,

सिर्फ़ लालसा भरी चाह में।

माँगा इश्क़ भरी नज़रें,

मिला बदन भर चाह।

समझ ना आया, तह-दर-तह

तह-ए-इश्क़ में सच्चा कौन, झूठा कौन?

और हर इल्ज़ाम इश्क़ पर आया।

पर कृष्ण ना मिले।

महादुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!