यादों से भागे फिरते हैं!

कभी अज़ान में, कभी आरती की

आवाज़ में खोजते रहे सुकून।

यादों से भागे फिरते रहे फ़िज़ूल।

पलकों के दहलीज़ पर चमकते रहे

कुछ सितारे और टूट कर बरसते रहे।

इंद्रधनुष के रंग, बेरंग हो गए।

यादों के चराग़ मज़ारों में टिमटिमाते रह गए।

लफ़्ज़ लफ़्ज़

लफ़्ज़ों के इस्तेमाल का दाम नहीं लगता।

पर लफ़्ज़ लफ़्ज़ मिल इज़हार करते हैं,

कई नई तस्वीर और तहज़ीब।

कलम के क़ैद-ओ-रिहाई से निकले

लफ़्ज़ ख़ूबसूरत मंज़र हैं ढालते,

या हैं रंग बिगाड़ते।

कविता, खबर, कहानियाँ….

अमूल्य या मूल्यहीन,

शालीन, सभ्य या अश्लील।

लफ़्ज़ों में हैं जादू-मिसाल,

टूटे लफ़्ज़ हैं तोड़ते, मीठे लफ़्ज़ हैं जोड़ते।