कहते हैं, आज़ाद छोड़ दो,
पंछी हो या इंसान।
ग़र वापस आना होगा,
अपने-आप आ जाएगे।
पर सच्चाई तो यह है कि
राह कोई भी, कभी भी भटक सकता है,
फिर ज़माना दोष देगा।
क्यों वापस आने की आदत ना लगाई,
क्यों राह-ए-नीड़ ना सिखलाई।
कहते हैं, आज़ाद छोड़ दो,
पंछी हो या इंसान।
ग़र वापस आना होगा,
अपने-आप आ जाएगे।
पर सच्चाई तो यह है कि
राह कोई भी, कभी भी भटक सकता है,
फिर ज़माना दोष देगा।
क्यों वापस आने की आदत ना लगाई,
क्यों राह-ए-नीड़ ना सिखलाई।