आदत

कहते हैं, आज़ाद छोड़ दो,

पंछी हो या इंसान।

ग़र वापस आना होगा,

अपने-आप आ जाएगे।

पर सच्चाई तो यह है कि

राह कोई भी, कभी भी भटक सकता है,

फिर ज़माना दोष देगा।

क्यों वापस आने की आदत ना लगाई,

क्यों राह-ए-नीड़ ना सिखलाई।