ठंड में बढ़ जाती है,
गुम चोट की कसक।
रातों में बढ़ जाती हैं,
गुम और भूली-बिसरीं
यादों की कसक।
ठंड में बढ़ जाती है,
गुम चोट की कसक।
रातों में बढ़ जाती हैं,
गुम और भूली-बिसरीं
यादों की कसक।
चोट से टूटे दिल से,
दिमाग़ ने पूछा –
तुम ठीक हो ना?
तुम्हें बुरा नहीं,
ज़्यादा भला होने की
मिली है सज़ा।
ऐसे लोगों की
दुनिया लेती है मज़ा।
पेश नहीं आते दिल से,
दिमाग़ वालों से।
प्यार करो अपने आप से,
मुझ से।
ज़िंदगी सँवर जाएगी।