जब छोटे थे दौड़ते,
गिरते और उठ जाते।
चोट पर खुद हीं
मलहम लगाते थे।
आज़ भी ज़िंदगी की
दौड़ में वही कर रहें हैं।
जब छोटे थे दौड़ते,
गिरते और उठ जाते।
चोट पर खुद हीं
मलहम लगाते थे।
आज़ भी ज़िंदगी की
दौड़ में वही कर रहें हैं।
सब खो दिया।
अब क्यों डरें?
कुछ और अब
ना चाहिए।
वरना फिर डरना
सीख जाएँगें।