हम सब कई बार टूटते और जुटते हैं। इस दौरान अपने अंदर के हम से हमारी मुलाक़ातें होतीं हैं, बातें होतीं हैं । मुस्कुरा कर मिलते रहो हर दिन अपने आप से। गुफ़्तगू करते रहो अपने आप से। वे पल, वे मुलाक़ातें बहुत कुछ सिखा और मज़बूत बना जायेंगीं।
Day: December 30, 2021
नीड़
पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।