मरते रिश्ते

ग़र रिश्ते रुलाने लगे,

थकाने लगे।

रूह की ताक़त निचोड़ दे।

तब दूरी है ज़रूरी।

जो नहीं किया उसकी

सफ़ाई क्यों है देनी?

जब अन्तरात्मा थक जाए।

तब आत्मसम्मान का

सम्मान है ज़रूरी।

दुनिया में बहुत कुछ

ख़त्म हो रहा है।

मारती नदियाँ, मृत सागर,

और मरते रिश्ते।

किसी को फ़र्क़ पड़ता है क्या?

जिन्हें फ़र्क़ पड़ेगा।

वे संभलना और रिश्ते

बचाना सीख लेंगे।

अधूरी ख्वाहिशें

क्यों कुरेदते हो

पुरानी बातें?

रूह पर उकेरे

यादों और दर्द के,

निशां कभी मिटते हैं क्या ?

खुरच कर हटाने की

कोशिश में कुछ ज़ख़्मों

के निशां रह जातें हैं

नक़्क़ाशियों से।

कई अधूरी ख़्वाहिशें,

गहनों में जड़े नागिनों सी

अपनी याद दिलाती हैं।

जब करो चर्चा,

गुज़रते हैं उसी दौर से।

ज़िंदगी के रंग – 220

घर के छत की ढलाई

के लिए लगे बल्ले, बाँस

और लकड़ियों के तख़्ते ने

बिखरे रेत-सीमेंट को

देख कर कहा –

हम ना हो तो तुम्हें

सहारा दे मकान का

छत कौन बनाएगा?

कुछ दिनों के बाद

मज़बूत बन चुका छत

बिन सहारा तना था।

और ज़मीन पर बिखरे थे

कुछ समय पहले

के अहंकार में डूबे बाँस,

बल्ले और तख़्तियाँ।

ज़िंदगी रोज़ नए रंग दिखाती है ।