चाँद को रोशन
करता है सूरज,
ख़ुद को जला-तपा कर,
अनंत काल से ।
क्या इंतज़ार है उसे,
कभी तो मिलन होगा?
नहीं, आफ़ताब को मालूम,
मिलन नहीं होगा कभी।
फिर भी जल रहा है…….
बे-लौस, निस्वार्थ मोहब्बत में ।
चाँद को रोशन
करता है सूरज,
ख़ुद को जला-तपा कर,
अनंत काल से ।
क्या इंतज़ार है उसे,
कभी तो मिलन होगा?
नहीं, आफ़ताब को मालूम,
मिलन नहीं होगा कभी।
फिर भी जल रहा है…….
बे-लौस, निस्वार्थ मोहब्बत में ।