बाज़ार

कहते हैं,

शादियाँ बिकने लगीं हैं।

जब देखने वाले ख़रीदार बैठे है,

ज़रूर बिकेंगी।

टिकें या ना टिकें,

क्या फ़र्क़ पड़ता है?

नई हुईं फिर बिकेंगी।

शादियों में, दिखावे के

बाज़ार बिकेंगे।

नई-नई अदायें बिकेंगी।

शो बिज़नेस की दुनिया है।

सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग,

सादा जीवन उच्च विचार

का नहीं है बाज़ार।

ग़र हो निहारने वाली हुजूम,

तो क्या ग़म है?

शादियाँ बिकेंगी।

भरोसा और यक़ीं

उनसे सच की

क्या उम्मीद करना,

जो ख़ुद से भी झूठ बोलतें हैं?

बड़े सलीक़े से झूठ बोलते हैं।

तय है, हर लफ़्ज़ से, बेख़ौफ़ टपकते झूठ का हुनर ,

मुद्दतों में सीखा होगा।

वे हमें नादाँ कहते हैं।

हैं नादान क्योंकि

हमने भी भरोसा करना ,

यक़ीं करना अरसे

से सीखा है।