कुंदन
ज़िंदगी के इम्तहानों में
तप कर सोना बने,
कुंदन हुए या
हुए ख़ाक।
यह तो मालूम नहीं।
पर अब महफ़िलें
उलझतीं नहीं।
बेकार की बातें
रुलातीं नहीं।
ना अपनी ख़ुशियाँ
कहीं और ढूँढते हैं ,
ना देते है किसी
को सफ़ाई ।
हल्की सी
मुस्कान के साथ,
अपनी ख़ुशियों पर
यक़ीं करना सीख रहें हैं।