आना-जाना जीवन
का दस्तूर है।
ग़म ना कर।
मौसम, साल, महीने, दिन…
लोग बदलते रहतें हैं।
रोज़ बदलती दुनिया
में अपने बने रहें।
जिनसे दुख-सुख कह ले,
कभी हँस ले,
कभी रो ले,
यह अपनापा बना रहे।
Happy 31 st December!!!
आना-जाना जीवन
का दस्तूर है।
ग़म ना कर।
मौसम, साल, महीने, दिन…
लोग बदलते रहतें हैं।
रोज़ बदलती दुनिया
में अपने बने रहें।
जिनसे दुख-सुख कह ले,
कभी हँस ले,
कभी रो ले,
यह अपनापा बना रहे।
Happy 31 st December!!!
हम सब कई बार टूटते और जुटते हैं। इस दौरान अपने अंदर के हम से हमारी मुलाक़ातें होतीं हैं, बातें होतीं हैं । मुस्कुरा कर मिलते रहो हर दिन अपने आप से। गुफ़्तगू करते रहो अपने आप से। वे पल, वे मुलाक़ातें बहुत कुछ सिखा और मज़बूत बना जायेंगीं।
पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।
जब छोटे थे दौड़ते,
गिरते और उठ जाते।
चोट पर खुद हीं
मलहम लगाते थे।
आज़ भी ज़िंदगी की
दौड़ में वही कर रहें हैं।
सब खो दिया।
अब क्यों डरें?
कुछ और अब
ना चाहिए।
वरना फिर डरना
सीख जाएँगें।
तेरे जाने के बाद,
कई बार तेरी ख़ुशबू से
गुफ़्तुगू की है।
ख़्वाबों में आ कर
कई बार जगाया तुमने।
पर यह मिलना भी
कोई मिलना है?
हर दिल में कितने
ज़ख़्म होते हैं….
ना दिखने वाले।
कुछ चोट, समय के
मरहम से भर जातें हैं।
कुछ रिसने वाले
नासूर बन, रूहों तक
उतर जातें हैं।
धीरे-धीरे ज़िंदगी
सिखा देती है,
दिल में राज़ औ लबों
पर मुस्कुराहट रखना।
ज़िंदगी के सफ़र में
अब जहाँ आ गए हैं।
बातें अब हम छुपाते नहीं।
लोगों के सिखाए
अदब के लिए,
अपनी ख्वाहिशें दबाते नहीं।
नक़ली सहानुभूति
दिखाने वालों से घबराते नहीं।
कड़वी बोली अब डराती नहीं।
गुनगुनी धूप
मुस्कुराना सिखाती है।
ख़ुद ज़िंदगी खुल कर
जीना सीखती है।
अधूरी मुहब्बतों की
दास्ताँ लिखी जाती है।
राधा और कृष्ण,
मीरा और कान्हा को
सब याद करते हैं।
किसे याद है कृष्ण की
आठ पटरानियों और
16 हजार 108 रानियों की?
चाँद को रोशन
करता है सूरज,
ख़ुद को जला-तपा कर,
अनंत काल से ।
क्या इंतज़ार है उसे,
कभी तो मिलन होगा?
नहीं, आफ़ताब को मालूम,
मिलन नहीं होगा कभी।
फिर भी जल रहा है…….
बे-लौस, निस्वार्थ मोहब्बत में ।
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