हमेशा क़रीब होना हीं सही नही।
बहुत क़रीब से देखने पर पूरे दृश्य को नहीं देखा जा सकता है।
वे धुँधली हो जातीं हैं।
परिदृश्य या घटना का हिस्सा बन कर पूरी बातें नहीं समझी जा सकती हैं.
जैसे चित्र में रह कर चित्र देखा नहीं जा सकता.
थोङे फासले भी मायने रखते हैं।
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