बेख़ुदी में

क़बूल भी नहीं कर सकते और इनकार भी नहीं कर सकते……

सचमुच देखा था तुम्हें क़रीब अपने.

हाथ भी बढ़ाया छूने के लिए.

तभी नींद खुल गईं और देखा बाहें शून्य में फैलीं हैं.

शायद सपने में घड़ी की सुईयों को पीछे घुमाते चले गए थे.

शायद बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए थे.

 

Image- Aneesh

फासले भी मायने रखते हैं !!

हमेशा क़रीब होना हीं सही नही।

बहुत क़रीब से देखने पर पूरे दृश्य को नहीं देखा जा सकता है।

वे धुँधली हो जातीं हैं।

परिदृश्य या घटना का हिस्सा बन कर पूरी बातें नहीं समझी जा सकती हैं.

जैसे चित्र में रह कर चित्र देखा नहीं जा सकता.

थोङे फासले भी मायने रखते हैं।