बेख़ुदी में

क़बूल भी नहीं कर सकते और इनकार भी नहीं कर सकते……

सचमुच देखा था तुम्हें क़रीब अपने.

हाथ भी बढ़ाया छूने के लिए.

तभी नींद खुल गईं और देखा बाहें शून्य में फैलीं हैं.

शायद सपने में घड़ी की सुईयों को पीछे घुमाते चले गए थे.

शायद बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए थे.

 

Image- Aneesh

दीवारों की ज़ुबान

दीवारों ने कहा – तुम सबों के राज दर राज खुल चुके होते.

अगर कान के साथ-साथ ज़ुबान भी होती हमारी.

 

दिल और आत्मा का दर्द

 

दिलों- दिमाग़ को दर्द जमा करने का कचरादान ना बनाओ.

खुल कर जीने के लिए दर्द को बहने देना ज़रूरी है –

बातों में, लेखन में …..

खुल कर हँसने के लिए खुल कर रोना भी ज़रूरी है,

ताकि दिल और आत्मा का दर्द आँसुओं में बह जाए.