पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?
पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?
क़बूल भी नहीं कर सकते और इनकार भी नहीं कर सकते……
सचमुच देखा था तुम्हें क़रीब अपने.
हाथ भी बढ़ाया छूने के लिए.
तभी नींद खुल गईं और देखा बाहें शून्य में फैलीं हैं.
शायद सपने में घड़ी की सुईयों को पीछे घुमाते चले गए थे.
शायद बेख़ुदी में तुमको पुकारे चले गए थे.
Image- Aneesh