जी भर, जी ले ज़िंदगी

सारे सच लोग झूठ बताते चले गये।

सारी ज़िंदगी छले जाते रहे।

कई धोखे भरे रिश्ते निभाते चले गये।

शायद हुआ ऊपर वाले के सब्र का अंत।

हाथ पकड़ ले चला राह-ए-बसंत।

एक नई दुनिया, नई दिशा में।

बोला, पहचान बना जी अपने में।

तलाश अपने आप को, अपने आप में।

ग़र चाहिए ख़ुशियाँ और सुकून का साया।

जाग, छोड़ जग की मोह-माया।

मैं हूँ हमेशा साथ तेरे, कर बंदगी।

ख़ुशगवारी से जी भर, जी ले ज़िंदगी।

3 thoughts on “जी भर, जी ले ज़िंदगी

Leave a reply to Muserista Cancel reply