अधूरी ग़ज़ल

गुमनाम अधूरी ग़ज़लों को

मुकम्मल क़ाफ़िया मिल जाए।

तो उनकी सफ़र पूरी हो जाए।

इश्क़ की किताब में

इश्क़-ए-इल्म में है सुरूर।

पढ़ दिल हो गया मगरूर।

पर ना मिला इश्क़ का इब्तिदा ना इंतिहा।

जब हुआ इश्क़,

इश्क़ की किताब में पढ़ा

कुछ काम ना आया…

ना जाने क्या खोया क्या पाया।

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