बिन आईना जीते हैं ज़िंदगी

कुछ लोग बिन आईना जीते हैं ज़िंदगी।

वे भूल जातें है, ख़ुद एक आईना है ज़िंदगी।

और जब अचानक उन्हें हीं उनका चेहरा

दिखाती है आईना-ई-ज़िंदगी।

तब नहीं पाते अपने आप को पहचान,

या अपना भूला चेहरा ना चाहतें हैं पहचानना?

धूमिल, दाग़दार, मलिन अक्स।

आईना नहीं बोलता झूठ, जानते हैं सभी शख़्स

जी भर, जी ले ज़िंदगी

सारे सच लोग झूठ बताते चले गये।

सारी ज़िंदगी छले जाते रहे।

कई धोखे भरे रिश्ते निभाते चले गये।

शायद हुआ ऊपर वाले के सब्र का अंत।

हाथ पकड़ ले चला राह-ए-बसंत।

एक नई दुनिया, नई दिशा में।

बोला, पहचान बना जी अपने में।

तलाश अपने आप को, अपने आप में।

ग़र चाहिए ख़ुशियाँ और सुकून का साया।

जाग, छोड़ जग की मोह-माया।

मैं हूँ हमेशा साथ तेरे, कर बंदगी।

ख़ुशगवारी से जी भर, जी ले ज़िंदगी।