ए’तिबार

हम थे ख़फ़ा ख़फ़ा उन से।

और बेरुख़ी से वो चल दिए,

वहाँ जहाँ हम मना ना सके।

वफ़ा-जफ़ा, वफ़ाई-बेवफ़ाई,

के ग़ज़ब हैं अफ़साने।

ग़ज़ब हैं फ़साने।

हमें ऐतबार हीं नहीं रहा ज़माने पर।