सबके सामने

मुस्कुराती आँखें सबके सामने

ग़ज़ब हैं झिलमिलाती सब के सामने।

चमक आँसुओं के नमी की है

या ख़ुशियों की है?

कैसे जानें?

नज़रों को पढ़ने वाले अब हैं कहाँ?

बोझ

दिल पर ना जाने कितना बोझ…

पत्थर सा लिए चलते है लोग।

कभी बह जाने दो यह दर्द और सोंच।

तब समझ आएगा दिल का मोल।

पत्थरों की प्रचंड नदियाँ,

झरने तभी बहते होंगे

जब पर्वतों के दिलों पर

बोझ हो जाते होंगे बेबर्दाश्त।