ग़र जीवन का अर्थ खोजना है!

खोने का डर क्यों? साथ क्या लाए थे।

क्या कभी बिना डरे जीने कोशिश की?

तब तो फ़र्क़ समझ आएगा।

इस जहाँ में आए, सब यहाँ पाए।

सब यही छोड़ जायें।

यही कहती है ज़िंदगी।

ग़र जीवन का अर्थ खोजना है।

एक बार ज़िंदगी की बातें मान

कर देखने में हर्ज हीं क्या है?

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दहलीज

दहलीज़ यूँ हीं नहीं बनते।

ये मकाँ को घर है बनाते।

घर की हिफ़ाज़त है करते।

इस कदर होतें है पैबस्त ये

चौखट दिल-औ-दिमाग़ में

कि दाख़िल होते एक से दूसरे दरवाज़े में,

नई सोंच आती है दिमाग़ में।

दिल की दहलीज़ हो या घर की।

ये कुछ बातें याद दिलाती है,

कुछ बातें भुलातीं है।

About doorway effect Psychologists says – walking through a door and entering another room creates a “mental blockage” in the brain. walking through open doors resets memory to make room for a new episode to emerge. That’s is why you sometimes walk into a “room and forget why you entered

Stay happy, healthy and safe- 110

#LockDownDay- 110

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Poetry is the breath and finer

spirit of all knowledge;

it is the impassioned expression

which is the countenance of all science.

 

 

William Wordsworth

जिंदगी के रंग -37 

तेज हवा में झोंके में झूमते ताजे खिले गुलाब 

की पंखुड़ियॉं  झड़ झड़ कर बिखरते देख पूछा –

नाराज नहीँ हो निर्दयी हवा के झोंके से ?

फूल ने कहा यह तो काल चक्र हैँ

 आना – जाना,  खिलना – बिखरना 

नियंता …ईश्वर…. के हाथों में हैँ

 ना की इस अल्हड़ नादान  हवा के  झोंके के वश में 

 फ़िर इससे कैसी  नाराजगी ? ? 

मौसम

हमारे अंदर भी  क्या बदलते मौसम हैं ?

क्या कभी  बसंत अौर कभी पतझङ  होते हैं ?

कभी कभी सुनाई देती है  गिरते पत्तों की उदास सरसराहट

या शरद की हिम शीतल खामोशियाँ

अौर कभी बसंत के खिलते फूलों की खुशबू….

ऋतुअों अौर मन का यह  रहस्य

बङा अबूझ है………

 

 

सूरज धुल कर चाँद

 

कशमकश में दिवस बीत गया….

सूरज धुल कर चाँद हो गया।

तब

आसमान के झिलमिलाते सितारों ने कहा –

हौसला रखो अौर आसमान चुमने की कोशिश करो।

क्योकिं अगर

उतना ऊपर ना भी पहुँच सके,

तब भी हम सितारों तक 

 तो जरुर पहुँच जाअोगे!!!

इम्तहान

 

जिंदगी के सफर में

सारे इम्तहान हमारे हीं हिस्से क्यों?

नतीज़े आये  ना आये ,

 अगला पर्चा शुरु हो जाता है

पत्थर

 

हम गलते-पीघलते नहीं ,
इसलिये 
पत्थर या पाषण कहते हो,
पर खास बात हैं कि
हम पल-पल बदलते नहीं।
अौर तो अौर, हम से
लगी ठोकरें क्या
तुम्हें कम सबक सिखाती हैं??