कसक

ठंड में बढ़ जाती है,

गुम चोट की कसक।

रातों में बढ़ जाती हैं,

गुम और भूली-बिसरीं

यादों की कसक।

7 thoughts on “कसक

  1. एक सपने में सर्दी
    रात
    यादाश्त
    वो आत्मा
    कॉलबैक
    बेहतर के लिए
    काम पर
    दिन के दौरान

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  2. बहुत सही बात कही आपने रेखा जी। पुरानी श्वेत-श्याम फ़िल्म ‘आरती’ (1962) का यादगार गीत है :
    आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया
    कि मेरे दिल पे पड़ा था कोई गम का साया
    इसी गीत का एक अंतरा है:
    मैं भी क्या चीज़ हूँ, खाया था कभी तीर कोई
    दर्द अब जाके उठा, चोट लगे देर हुई
    तुम को हमदर्द जो पाया, तो मुझे याद आया

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    1. ये पंक्तियाँ सच्ची हैं। कोई समझने वाला हो या अकेले, एकांत में जब अपने आप के साथ समय बिताया जाय। तब बातें ज़्यादा याद आतीं है।
      शुक्रिया जितेंद्र जी।

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