चाय, किताबें, इश्क़ और तुम

हाथों में गर्म चाय की प्याली औ हम किताबों में गुम।

हो इश्क़ का तरन्नुम औ यादों में तुम।

तब लबों पर थिरक उठती है तबस्सुम,

और आँखों में अंजुम।

चाय, किताबें, इश्क़ और तुम

इन्ही से मिल बनें हैं हम।

अर्थ

अंजुम – सितारे; तारे।

तरन्नुम – स्वर-माधुर्य, गाना, मधुर गान, लय, अलाप।

ख़फ़ा

अजब है नज़ारा जरा गौर कर।

ख़ुद से जुनूनी प्यार पर,

औरों से जरा ज़रा सी बातों पर

क्यों लोग है ख़फ़ा-ख़फ़ा?

अपने दिल को पढ़,

ज़िंदगी से गिला तो नहीं?

कहीं ख़ुद से ख़फ़ा तो नहीं?

नाराज़गी और राज़ी होना है हमारी फ़ितरत।

पर क्यों नाराज़गी उतारें औरों पर?

सोंचिये जरा, इंसानों के इस रवईये से

ग़र ख़ुदा सीख, ख़फ़ा हुआ इंसानों से

तो क्या होगा?

Narcissism is increasing in modern

societies, specially in West and

referred to as a “narcissism epidemic.

The endorsement rate for the statement “

Narcissism – a person who has an excessive

interest in or admiration of themselves.who

think the world revolves around them.

सीमाएँ

बड़ी मुश्किलों से जाना अपने-आप को,

पहचाना अपने आप को,

अपनी रूह को।

कुछ नादान कहतें हैं-

बडे अच्छे से पहचानते हैं,

जानते तुम्हें हैं।

ये ज़िंदगी में वेवजह दखल देतें हैं।

दूसरों की सीमाएँ तोड़ने वाले से दूरी है ज़रूरी।

Positive Psychology – In real life mute

unwanted people by setting clear

boundaries. Boundaries define us.

शमा के नूर

पूछा किसी ने रूमी से- दरवेश! किस मद में चूर हो?

गोल-गोल झूमते और घूमते लगते शमा के नूर हो।

नृत्य में बेफ़िक्री डूबे किस सुरूर हो?

यह नशा पाते कहाँ से हो?

जवाब मिला – चूर हैं हम मद, औ मुहब्बत में उसके,

दुनिया रौशन है उल्फ़त में जिसके।

तु हर चोट की दरार से रिसके,

रौशनी भरने दे अपनी रूह में।

उसके इश्क़ को ना ढूँढ दिल में,

अपने अंदर जो दीवारें बना रखीं है,

तोड़ आज़ाद हो जा हँस के।

तु भी झूमने लगेगा इस मद में।

अर्थ

शमा – सूफी नृत्य की रूहानी दुनिया।

रूमी – सूफ़ी दरवेश \ संत।

ज़िंदगी के मेले में

ज़िंदगी के मेले में कई मिलते हैं

कुछ दूर साथ चलते हैं।

अपनी अपनी मंज़िल की ओर

बढ़ जाते हैं,

जैसे हो दरिया का बहता पानी।

बहती नादिया रुक जाये तो

खो देती है ताज़गी और रवानी।

बढ़ते जाना हीं है ज़िंदगानी।

मंज़िल पाना है जीवन की कहानी।

धूप का इक टुकड़ा

आफ़ताब से आँख मिलाने की कोशिश ना कर

रौशनी से शिकवा-शिकायत न कर।

अंधेरे को उजाला करने को

इक किरण-ए-आफ़ताब काफ़ी है।

चम्पई अंधेरा और सुरमई उजाला

रौशन करने को गज़ाला-ए-किरण…

…धूप का इक टुकड़ा हीं काफ़ी है।

अर्थ : गज़ाला -सूर्य, सूरज,

picture courtesy – Anurag Dutta

My 8th Anniversary with WordPress!

Close the door. Write with no one looking over your shoulder. Don’t try to figure out what other people want to hear from you; figure out what you have to say. It’s the one and only thing you have to offer.”

~ Barbara Kingsolver

सुकून और ख़ुशियाँ

ऐसा होता तो वैसा होता।

वैसा होता तो अच्छा होता।

अगर मन की बातें होतीं

कैसे मालूम कैसा होता?

कौन जाने क्या होता?

शायद यही सबसे अच्छा है?

अपने मन की बातें जाने दो।

बातें जैसी है वैसे स्वीकार कर लो,

ग़र ख़ुशियाँ और सुकून चाहिए।

Do not worry that your life is turning

upside down. How do you know the

side you are used to is better than

the one to come?

~ Rumi

उम्मीदों की शाख़ पर

उम्मीदों की शाख़ पर

आफ़ताब को गले लगाने की ज़िद्द ना कर।

महताब को पाने की ज़िद्द ना कर।

ज़िंदगी हमेशा हसीन कहानी सी हो

यह साजिद ना कर।

ज़िन्दगी कभी मिले राहों में,

उससे बातें कर।

बतायेगी, उम्मीदों की शाख़ पर, नई राह पर,

नये आरजूओं का सफ़र है ज़िंदगी।

मकाँ

मकाँ है क़ब्र

जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं,

मैं अपने घर में हूँ

या मैं किसी मज़ार में हूँ।

~~मुनीर नियाज़ी