नीर या बर्फ के फूल ?

रंग बदलते मौसम, रंग बदलती दुनिया,

रस्ते बदलते दरिया और नादियाँ देख,

हर साँचे में ढलने वाले पानी के कहा – देख

वक़्त के साथ बदलना नहीं है मीनमेख।

नीर ने कहा, हर हाल में ख़ुश रहना सीख।

हमने तो सीख लिया हर हाल में ढलना।

भाप, बुलबुले बर्फ, नीर बन बह चलना।

ठंड में नाचते बर्फ के क्रिस्टल बन पलना।

बुलबुले से विलीन हो सम्मोहन बर्फ के फूल में खिलना।

जब अपना समय आएगा, बर्फ फिर नीर बन जाएगा।

छोड़ आयी हूँ

छोड़ आयी हूँ उस दरवाज़े तक।

लौट कर आओगे नहीं उस फ़लक

वापस कभी इस जहान तक।

फिर भी हर आहट पर होता है शक।

नज़रें उठ जाती है इस ललक,

शायद लौट आओ, दिल कहता है बहक।

सूनी राहें देख कदम रह जाते हैं ठिठक।

रूह में रह जाती है कसक।