शमा के नूर

पूछा किसी ने रूमी से- दरवेश! किस मद में चूर हो?

गोल-गोल झूमते और घूमते लगते शमा के नूर हो।

नृत्य में बेफ़िक्री डूबे किस सुरूर हो?

यह नशा पाते कहाँ से हो?

जवाब मिला – चूर हैं हम मद, औ मुहब्बत में उसके,

दुनिया रौशन है उल्फ़त में जिसके।

तु हर चोट की दरार से रिसके,

रौशनी भरने दे अपनी रूह में।

उसके इश्क़ को ना ढूँढ दिल में,

अपने अंदर जो दीवारें बना रखीं है,

तोड़ आज़ाद हो जा हँस के।

तु भी झूमने लगेगा इस मद में।

अर्थ

शमा – सूफी नृत्य की रूहानी दुनिया।

रूमी – सूफ़ी दरवेश \ संत।