जो इश्क़ तुमने सिखाये

ज़िंदगी में जो इश्क़ तुमने सिखाये।

जीने के जो आदाब तुमने सिखाये।

ज़माने में यूँ अकेला छोड़,

जीवन के अधूरे सफ़र में साथ छोड़,

वस्ल-ओ-हिज्र के जो तरीक़े सिखाये।

इस हिज्र ने गुरु बन ऊपरवाले से मिलाये।

वस्ल-ए-इश्क़ गुरु बन मुझे मेरा पता बताए।

अर्थ –

* वस्ल-ओ-हिज्र – मिलन और वियोग, प्रेमी

और प्रेमिका का आपस में मिलना और बिछुड़ना।

* हिज्र – अकेलापन, जुदाई, विरह, वियोग,

विछोह, त्याग।

अपना पीछा करते करते

अपना पीछा करते करते,

मुलाक़ात हुई अपनी परछाईं-ए-नक़्श से।

मिले दरिया के बहते पानी में अपने अक्स से।

मिले आईने में जाने पहचाने अजनबी शख़्स से।

मुस्कुरा कर कहा आईने ने –

बड़ी मुद्दतों के बाद मिली हो अपने आप से।

वक्त तो लगेगा जानने में, पहचानने में।

उलझे जीवन रक़्स में,

बिंब-प्रतिबिंब देख बे-‘अक्स

हो खो ना जाए यह शख़्स।

अर्थ – रक़्स – नृत्य