जिंदगी के रंग- कविता 15

News PUNENewsline , Tuesday, MARCH 7, 2017

SSC Exam, Fearing paper leak cases,

 

फिसलते हुए वक्त को रोकना बस में नहीं है

जितना पकड़ो,

रेत की तरह मुट्ठी से रिस जाता है

बस बदलता ही रहता है  यह वक्त,

जिंदगी के  नये नये  परीक्षाअों  के साथ।

कितना भी पूछ लो पंडित नजूमियों से आगे क्या होगा???

कोई जवाब नहीं मिलता,

वक्त अौर जिंदगी में आगे क्या होगा ?

पर यह इंसान भी क्या चीज है,

खुद ही परीक्षा लेता है अौर

अक्सर  परीक्षा के पर्चे, परीक्षा से पहले

चंद सिक्कों के लिये  बेच दिया करता  हैं…………

एक नन्ही परी (कन्या भ्रुण हत्या पर आधारित मार्मिक कहानी )A story on female foeticide

MP village infamous for foeticide to marry off daughter after 40 yearsINDIA Updated: Feb 26, 2017 10:33 IST
Hindustan Times, Bhind

After 40 years, Gumara village in Bhind district of Madhya Pradesh will witness the marriage of a girl born there.The long wait is due to the cruel fact that the villagers did not allow a girl child to survive as they either killed it in the womb or soon after the birth.

विनीता सहाय गौर से कटघरे मे खड़े राम नरेश को देख रही थीं। पर उन्हे याद नहीं आ रहा था, इसे कहा देखा है? साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी। साथ ही चेहरे पर उदासी की लकीरे थीं।वह कटघरे मे अपराधी की हैसियत से खड़ा था। वह आत्मविश्वासविहीन था।

लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं था। वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था।कंधे झुके थे। शरीर कमजोर था। वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था। लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कबूल कर रहा था। ऐसा अपराधी तो उन्होंने आज तक नहीं देखा था। उसकी पथराई आखों मे अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों।

लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था। जज़ साहिबा को लग रहा था- यह इंसान इतना निरीह है। यह किसी का कातिल नहीं हो सकता है। क्या इसे किसी ने झूठे केस मे फँसा दिया है? या पैसों के लालच मे झूठी गवाही दे रहा है?नीचे के कोर्ट से उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई थी।
विनीता सहाय ने जज़ बनने के समय मन ही मन निर्णय किया था कि कभी किसी निर्दोष और लाचार को सज़ा नहीं होने देंगी। झूठी गवाही से उन्हे सख़्त नफरत थी। अगर राम नरेश का व्यवहार ऐसा न होता तो शायद जज़ विनीता सहाय ने उसपर ध्यान भी न दिया होता।

दिन भर मे न-जाने कितने केस निपटाने होते है। ढेरों जजों, अपराधियों, गवाहों और वकीलों के भीड़ मे उनका समय कटता था। पर ऐसा दयनीय कातिल नहीं देखा था। कातिलों की आँखों मे दिखनेवाला गिल्ट या आक्रोश कुछ भी तो नज़र नहीं आ रहा था। विनीता सहाय अतीत को टटोलने लगी। आखिर कौन है यह?कुछ याद नहीं आ रहा था।

विनीता सहाय शहर की जानी-मानी सम्माननीय हस्ती थीं। गोरा रंग, छोटी पर सुडौल नासिका, ऊँचा कद, बड़ी-बड़ी आखेँ और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व वाली विनीता सहाय अपने सही और निर्भीक फैसलो के लिए जानी जाती थीं। उम्र के साथ सफ़ेद होते बालों ने उन्हें और प्रभावशाली बना दिया था। उनकी बुद्धिदीप्त,चमकदार आँखें एक नज़र में ही अपराधी को पहचान जाती थीं। उन्हे सुप्रींम कोर्ट की पहली महिला जज़ होने का भी गौरव प्राप्त था। उनके न्याय-प्रिय फैसलों की चर्चा होती रहती थी।

पुरुषो के एकछत्र कोर्ट मे अपना करियर बनाने मे उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। सबसे पहला युद्ध तो उन्हें अपने परिवार से लड़ना पड़ा था। वकालत करने की बात सुनकर घर मेँ तो जैसे भूचाल आ गया। माँ और बाबूजी से नाराजगी की तो उम्मीद थी, पर उन्हें अपने बड़े भाई की नाराजगी अजीब लगी। उन्हें पूरी आशा थी कि महिलाओं के हितों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले भैया तो उनका साथ जरूर देंगे। पर उन्हों ने ही सबसे ज्यादा हँगामा मचाया था।

तब विनी को सबसे हैरानी हुई, जब उम्र से लड़ती बूढ़ी दादी ने उसका साथ दिया। दादी उसे बड़े लाड़ से ‘नन्ही परी’ बुलाती थी। विनी रात मेँ दादी के पास ही सोती थी। अक्सर दादी कहानियां सुनाती थी। उस रात दादी ने कहानी तो नहीं सुनाई परगुरु मंत्र जरूर दिया। दादी ने रात के अंधेरे मे विनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- मेरी नन्ही परी, तु शिवाजी की तरह गरम भोजन बीच थाल से खाने की कोशिश कर रही है। जब भोजन बहुत गरम हो तो किनारे से फूक-फूक कर खाना चाहिए।

तु सभी को पहले अपनी एल एल बी की पढाई के लिए राजी कर। न कि अपनी वकालत के लिए। ईश्वर ने चाहा तो तेरी कामना जरूर पूरी होगी। विनी ने लाड़ से दादी के गले मे बाँहे डाल दी। फिर उसने दादी से पूछा- दादी तुम इतना मॉडर्न कैसे हो गई? दादी रोज़ सोते समय अपने नकली दाँतो को पानी के कटोरे मे रख देती थी। तब उनके गाल बिलकुल पिचक जाते थे और चेहरा झुरियों से भर जाता था।

विनी ने देखा दादी की झुरियों भरे चेहरेपर विषाद की रेखाएँ उभर आईं और वे बोल पडी-बिटिया, औरतों के साथ बड़ा अन्याय होता है। तु उनके साथ न्याय करेगी यह मुझे पता है। जज बन कर तेरे हाथों मेँ परियों वाली जादू की छड़ी भी तो आ जाएगी न। अपनी अनपढ़ दादी की ज्ञान भरी बाते सुन कर विनी हैरान थी। दादी के दिये गुरु मंत्र पर अमल करते हुए विनी ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली। तब उसे लगा – अब तो मंज़िल करीब है।
पर तभी न जाने कहा से एक नई मुसीबत सामने आ गई। बाबूजी के पुराने मित्र शरण काका ने आ कर खबर दी। उनके किसी रिश्तेदार का पुत्र शहर मे ऊँचे पद पर तबादला हो कर आया है। क्वाटर मिलने तक उनके पास ही रह रहा है। होनहार लड़का है। परिवार भी अच्छा है। विनी के विवाह के लिए बड़ा उपयुक्त वर है। उसने विनी को शरण काका के घर आते-जाते देखा है। बातों से लगता है कि विनी उसे पसंद है। उसके माता-पिता भी कुछ दिनों के लिए आनेवाले है।

शरण काका रोज़ सुबह,एक हाथ मे छड़ी और दूसरे हाथ मे धोती थाम कर टहलने निकलते थे। अक्सर टहलना पूरा कर उसके घर आ जाते थे। सुबह की चाय के समय उनका आना विनी को हमेशा बड़ा अच्छा लगता था। वे दुनियां भर की कहानियां सुनाते। बहुत सी समझदारी की बातें समझाते।

पर आज़ विनी को उनका आना अखर गया। पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि शादी की बात छेड़ दी। विनी की आँखें भर आईं। तभी शरण काका ने उसे पुकारा- ‘बिटिया, मेरे साथ मेरे घर तक चल। जरा यह तिलकुट का पैकेट घर तक पहुचा दे। हाथों मेँ बड़ा दर्द रहता है। तेरी माँ का दिया यह पैकेट उठाना भी भारी लग रहाहै।

बरसो पहले भाईदूज के दिन माँ को उदास देख कर उन्हों ने बाबूजी से पूछा था। भाई न होने का गम माँ को ही नही, बल्कि नाना-नानी को भी था। विनी अक्सर सोचती थी कि क्या एक बेटा होना इतना ज़रूरी है? उस भाईदूज से ही शरण काका ने माँ को मुहबोली बहन बना लिया था। माँ भी बहन के रिश्ते को निभाती, हर तीज त्योहार मे उन्हें कुछ न कुछ भेजती रहती थी। आज का तिलकुट मकर संक्रांति का एडवांस उपहार था। अक्सर काका कहते- विनी की शादी मे मामा का नेग तो मुझे ही निभाना है।

शरण काका और काकी मिनी दीदी की शादी के बाद जब भी अकेलापन महसूस करते , तब उसे बुला लेते थे। अक्सर वे अम्मा- बाबूजी से कहते- मिनी और विनी दोनों मेरी बेटियां हैं। देखो दोनों का नाम भी कितने मिलते-जुलते है। जैसे सगी बहनों के नाम हो। शरण काका भी अजीब है। लोग बेटी के नाम से घबराते है। और काका का दिल ऐसा है, दूसरे की बेटी को भी अपना मानते है।

मिनी दीदी के शादी के समय विनी अपने परीक्षा मे व्यस्त थी। काकी उसके परीक्षा विभाग को रोज़ कोसती रहती। दीदी के हल्दी के एक दिन पहले तक परीक्षा थी। काकी कहती रहती थी- विनी को फुर्सत होता तो मेरा सारा काम संभाल लेती। ये कालेज वालों परीक्षा ले-ले कर लड़की की जान ले लेंगे। शांत और मृदुभाषी विनी उनकी लाड़ली थी।

वे हमेशा कहती रहती- ईश्वर ने विनी बिटिया को सूरत और सीरत दोनों दिया है। आखरी पेपर दे कर विनी जल्दी-जल्दी दीदी के पास जा पहुची। उसे देखते काकी की तो जैसे जान मे जान आ गई। दीदी के सभी कामों की ज़िम्मेवारी उसे सौप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी। उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब मिनी के विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी।

शाम मे विनी, दीदी के साथ बैठ कर उनका बक्सा ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने कॉस्मेटिक्स तो ख़रीदा ही नहीं है। मेहँदी की भी व्यवस्था नहीं है। वह काकी से बता कर भागी भागी बाज़ार से सारी ख़रीदारी कर लाई। विनी ने रात मे देर तक बैठ कर दीदी को मेहँदी लगाई। मेहँदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं। शायद किसी और ने पहन लिया होगा।

शादी के घर मे तो यह सब होता ही रहता है। घर मेहमानों से भरा था। बरामदे मे उसे किसी की चप्पल नज़र आई। वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई। रात मे वह दीदी के बगल मे रज़ाई मे दुबक गई। न जाने कब बाते करते-करते उसे नींद आ गई।
सुबह, जब वह गहरी नींद मे थी। किसी उसकी चोटी खींच कर झकझोर दिया।कोई तेज़ आवाज़ मे बोल रहा था- अच्छा, मिनी दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थी। हैरान विनी ने चेहरे पर से रज़ाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा। उसकी आँखें अभी भी नींद से भरी थीं।

तभी मिनी दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गई। अतुल, यह विनी है। सहाय काका की बेटी और विनी यह अतुल है। मेरे छोटे चाचा का बेटा। हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है। छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्हों ने अतुल को भेज दिया। अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला- “मुझे लगा, दीदी, तुम सो रही हो। दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था।“

विनी का को बड़ा गुस्सा आया। उसने दीदी से कहा- मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं। उस समय मुझे जो चप्पल नज़र आई मैं ने पहन लिया। मैंने इनकी चप्पलें पहनी है,किसी का खून तो नहीं किया । सुबह-सुबह नींद खराब कर दी। इतने ज़ोरों से झकझोरा है। सारी पीठ दर्द हो रही है। गुस्से मेँ वह मुंह तक रज़ाई खींच कर सो गई। अतुल हैरानी से देखता रह गया। फिर धीरे से दीदी से कहा- बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है।

काकी एक बड़ा सा पैकेट ले कर विनी के पास पहुचीं और पूछने लगी – बिटिया देख मेरी साड़ी कैसी है? पीली चुनरी साड़ी पर लाल पाड़ बड़ी खूबसूरत लग रही थी। विनी हुलस कर बोल पड़ी- बड़ी सुंदर साड़ी है। पर काकी इसमे फॉल तो लगा ही नहीं है। हद करती हो काकी। सारी तैयारी कर ली हो और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है। दो मै जल्दी से फॉल लगा देती हूँ।

विनी दीदी के पलंग पर बैठ कर फॉल लगाने मे मसगुल हो गई। काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गई और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगी। विनी ने पूछा- काकी तुम्हारे पैर दबा दूँ क्या? वे बोलीं – बिटिया, एक साथ तू कितने काम करेगी? देख ना पूरे काम पड़े है और अभी से मैं थक गई हूँ। साँवली -सलोनी काकी के पैर उनकी गोल-मटोल काया को संभालते हुए थक जाए, यह स्वाभाविक ही है। छोटे कद की काकी के लालट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी। विनी को काकी भी उसी बिंदी जैसी गोल-मटोल लगती थीं।

तभी मिनी दीदी की चुनरी मे गोटा और किरण लगा कर छोटी बुआ आ पहुचीं। देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी। फैला कर देखो ना- छोटी बुआ कहने लगी। पूरे पलंग पर सामान बिखरा था। काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुई कहा- इसके ऊपर ही डाल कर दिखाओ छोटी मईयां।

सिर झुकाये फॉल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बुआ ने फैला दिया। चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी। काकी बोल पड़ी- देख तो विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग। विनी की नज़रें अपने-आप ही सामने रखे ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ी। उसका चेहरा गुलाबी पड़ गया। उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा।

तभी अचानक किसी ने उसके पीठ पर मुक्के जड़ दिये- “ तुम अभी से दुल्हन बन कर बैठ गई हो दीदी” अतुल की आवाज़ आई। वह सामने आ कर खड़ा हो गया। अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया। विनी की आँखों मेँ आंसू आ गए थे। अचानक हुए मुक्केबाज़ी के हमले से सुई उसकी उंगली मे चुभ गई थी। उंगली के पोर पर खून की बूँद छलक आई थी।

अतुल बुरी तरह हड्बड़ा गया। बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था। मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुल्हन बनने की जल्दी है। पर मुझ से गलती हो गई- वह काकी से बोल पड़ा। फिर विनी की ओर देख कर ना जाने कितनी बार सॉरी-सॉरी बोलता चला गया। तब तक मिनी दीदी भी आ गई थी।

विनी की आँखों मेँ आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली- “अतुल, तुम्हें इस बार सज़ा दी जाएगी।“ बता विनी इसे क्या सज़ा दी जाए? विनी ने पूछा- इनकी नज़रे कमजोर है क्या? अब इनसे कहो सभी के पैर दबाये। यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे मे जा कर फॉल लगाने लगी।

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, और बोला- वाह! क्या बढ़िया फैसला है जज़ साहिबा का। बड़ी अम्मा, देखो मैं हुक्म का पालन कर रहा हूँ। “तू भी हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है अतुल?”-मिनी दीदी की आवाज़ विनी को सुनाई दी। दीदी, इस बार भी मेरी गलती नहीं थी- अतुल सफाई दे रहा था।

फॉल का काम पूरा कर विनी हल्दी के रस्म की तैयारी मेँ लगी थी। बड़े से थाल मे हल्दी मंडप मे रख रही थी। तभी मिनी दीदी ने उसे आवाज़ दी। विनी उनके कमरे मे पहुचीं। दीदी के हाथों मे बड़े सुंदर झुमके थे। दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा- ये कैसे है विनी? मैं तेरे लिए लाई हूँ। आज पहन लेना। मैं ये सब नही पहनती दीदी- विनी झल्ला उठी। सभी को मालूम है कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है। फिर दीदी क्यों परेशान कर रही है? पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गई।

दीदी ने जबर्दस्ती उसके हाथों मेँ झुमके पकड़ा दिये। गुस्से मे विनी ने झुमके ड्रेसिंग टेबल पर पटक दिये। फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा और दरवाज़े तक चला गया। तुनकते हुए विनी तेज़ी से पलट कर बाहर जाने लगी। उसने ध्यान ही नहीं दिया था कि दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था। तेज़ी से बाहर निकालने की कोशिश मे वह सीधे अतुल से जा टकराई। उसके दोनों हाथों में लगी हल्दी के छाप अतुल के सफ़ेद टी-शर्ट पर उभर आए।

वह हल्दी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी। पर हल्दी के दाग और भी फैलने लगे। अतुल ने उसकी दोनों कलाइयां पकड़ ली और बोल पड़ा- यह हल्दी का रंग जाने वाला नहीं है। ऐसे तो यह और फ़ैल जाएगा। आप रहने दीजिये। विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई।

बड़े धूम-धाम से दीदी की शादी हो गई। दीदी की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा। कुछ दिनों से अम्मा की तबियत ठीक नहीं चल रही थी। डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चेक-अप का सुझाव दिया था। मिनी दीदी के शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था। दीदी की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था।
***
एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दिया। विनी को देखने लड़केवाले अभी कुछ देर मे आना चाहते हैं। घर मे जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई। पर विनी बड़ी परेशान थी। ना-जाने किसके गले बांध दिया जाएगा?

उसके भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएगे। अम्मा उसे तैयार होने कह कर किचेन मे चली गईं। तभी मालूम हुआ कि लड़का और उसके परिवारवाले आ गए है। बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंग रूम मेँ बातें कर रहे थे। अम्मा उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उसके बाल संवारे। अपने अलमारी से झुमके निकाल कर दिये। विनी झुंझलाई बैठी रही।

अम्मा ने जबर्दस्ती उसके हाथों मे झुमके पकड़ा दिये। गुस्से मे विनी ने झुमके पटक दिये। एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंग रूम के दरवाजे तक चला गया। ड्राइंग-रूम उसके कमरे से लगा हुआ था।

परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं। विनी अम्मा के साथ नज़रे नीची किए हुए ड्राइंग-रूम मेँ जा पहुची। वह सोंच मे डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए। काकी ने उसे एक सोफ़े पर बैठा दिया। तभी बगल से किसी की ने धीरे से पूछा- आज किसका गुस्सा झुमके पर उतार रही थी? आश्चर्यचकित नज़रों से विनी ने ऊपर देखा। उसने फिर कहा- मैं ने कहा था न, हल्दी का रंग जाने वाला नहीं है। सामने अतुल बैठा था।

अतुल और उसके माता-पिता के जाने के बाद काका ने उसे बुलाया। बड़े बेमन से कुछ सोंचती हुई वह काका के साथ चलने लगी। गेट से बाहर निकलते ही काका ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- “विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूँ। बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है। मैंने अतुल को तेरे सपने के बारे मेँ बता दिया है। तू किसी तरह की चिंता मत कर। मुझ पर भरोसा कर बेटा।

काका ने ठीक कहा था। वह आज़ जहाँ पंहुची है। वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था। अतुल आज़ भी अक्सर मज़ाक मेँ कहते हैं –“मैं तो पहली भेंट मेँ ही जज़ साहिबा की योग्यता पहचान गया था।“ उसकी शादी मेँ सचमुच शरण काका ने मामा होने का दायित्व पूरे ईमानदारी से निभाया था। पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी। बचपन की आदत वह बादल नहीं पाई थी।
***
कोर्ट का कोलाहल विनीता सहाय को अतीत से बाहर खींच लाया। पर वे अभी भी सोच रही थीं – इसे कहाँ देखा है। दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी। राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे। वह एक भयानक कातिल था। उसने इकरारे जुर्म भी कर लिया था।

उसने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। एक सोची समझी साजिश के तहत उसने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर जंगल मे फेंक दिया था। वकील ने बताया कि राम नरेश का अपराधिक इतिहास है। वह एक क्रूर कातिल है।

पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था। पर सबूतों के आभाव मे छूट गया था। इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए। वकील ने पुराने केस की फाइल उनकी ओर बढ़ाई। फ़ाइल खोलते ही उनके नज़रों के सामने सब कुछ साफ हो गया। सारी बातें चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगी।

लगभग बाईस वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था। उसने अपनी दूध मुहीं बेटी की हत्या कर दी थी। तब विनीता सहाय वकील हुआ करती थी। ‘कन्या-भ्रूण-हत्या’ और ‘बालिका-हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे। माता-पिता और समाज द्वारा बेटे-बेटियों में किए जा रहे भेद-भाव उन्हें असह्य लगते थे।

तब विनीता सहाय ने रामनरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ी चोटी की ज़ोर लगा दी थी। उस गाँव मेँ अक्सर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था। इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी। लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ।

इस लिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था। आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था। विनीता सहाय ने मन ही मन सोचा- ‘काश, तभी इसे सज़ा मिली होती। इतना सीधा- सरल दिखने वाला व्यक्ति दो-दो कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सज़ा देंगी।

जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा- ‘क्या तुम्हें अपनी सफाई मे कुछ कहना है?’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान खेलने लगी। कुछ पल चुप रहने के बाद उसने कहा – “हाँ हुज़ूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है। मैं आप लोगों जैसा पढ़ा- लिखा और समझदार तो नहीं हूँ। पता नहीं आपलोग मेरी बात समझेगें या नहीं। पर आप मुझे यह बताइये कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले। तब क्या उसे मार डालना अपराध है?”

मेरी बेटी को उसके पति ने दहेज के लिए जला दिया था। मरने से पहले मेरी बेटी ने अपना आखरी बयान दिया था, कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उसके पति ने जला दिया। पर वह पुलिस और कानून से बच निकला। इस लिए उसे मैंने अपने हाथों से सज़ा दिया। मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह का कोई अफसोस नहीं है।

उसका चेहरा मासूम लग रहा था। उसकी बूढ़ी आँखों मेँ आंसू चमक रहे थे, पर चेहरे पर संतोष झलक रहा था। वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ-“ हुज़ूर, क्या आपको याद है? आज़ से बाईस वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते मार डाला था, तब आप मुझे सज़ा दिलवाना चाहती थीं।

आपने तब मुझे बहुत भला-बुरा कहा था। आपने कहा था- बेटियां अनमोल होती हैं। उसे मार कर मैंने जघन्य पाप किया है।“

आप की बातों ने मेरी रातो की नींद और दिन का चैन ख़त्म कर दिया था। इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि ईश्वर ने मुझे भूल सुधारने के मौका दिया है। मैंने प्रयश्चित करना चाहा। उसका नाम मैंने परी रखा। बड़े जतन और लाड़ से मैंने उसे पाला।

अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया। वह मेरी जान थी। मैंने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा। मै हर दिन मन ही मन आपको आशीष देता कि आपने मुझे ‘पुत्री-सुख’ से वंचित होने से बचा लिया। मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी। मैंने उसकी शादी बड़े अरमानों से किया। अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी।

मित्रो और रिश्तेदारों से उधार ली। किसी तरह की कमी नहीं की। पर दुनिया ने उसके साथ वही किया जो मैंने बाईस साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था। उसे मार डाला। तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूँ? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस क्रूर दुनिया के दुखों और भेद-भाव को सहना नहीं पड़ा। जबकि छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है। ऐसे मेँ सज़ा किसे मिलनी चाहिए? मुझे सज़ा मिलनी चाहिए या इस समाज को?

अब आप बताइये कि बेटियोंको पाल पोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पल-पल तिल-तिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दे। कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफ़ों को झेलने से तों बच जाएगीं। मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है।

उन्हे जिंदगी के हर कदम पर दुख-दर्द झेलने पड़ते है। काश मैंने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते मार दिया होता। आप मुझे बताइये, क्या कहीं ऐसी दुनिया हैं जहाँ जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेद-भाव के एक सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं। पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूँ। क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि यह नतीजा देखने को मिले? या समाज हमेँ कमजोर होने की सज़ा दे रहा है? क्या सही है और क्या गलत, आप मुझे बताइये।

विनीता सहाय अवाक थी। मुक नज़रो से राम नरेश के लाचार –कमजोर चेहरे को देख रही थीं। उनके पास कोई जवाब नहीं था। पूरे कोर्ट मे सन्नाटा छा गया था। आज एक नया नज़रिया उनके सामने था? उन्होंने उसके फांसी की सज़ा को माफ करने की दया याचिका प्रेसिडेंट को भिजवा दिया।

अगले दिन अखबार मे विनीता सहाय के इस्तिफ़े की खबर छपी थी। उन्होंने वक्तव्य दिया था – इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है। जिससे समाज लड़कियों को समान अधिकार मिले। अन्यथा न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। गलत सामाजिक व्यवस्था और करप्शन न्याय को गुमराह करता है और लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा ख़त्म करता है। मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध मेँ न्यायधिश पद से इस्तीफा देती हूँ।

 

image from internet.

धुंध- जिंदगी के रंग- 11(कविता) A Tributes -poetry

Etah road accident: School bus collides with truck killing over 20 school kids, dozens injured.( 19th January, 2017)

palash

राह चलते-चलते ,

सामने धुंध छा गया।

धुंधली राह में ङगर खो गया।

हँसते- खिलखिलाते नन्हें-मुन्ने भी

खो गये कोहरे की चादर में।

रह गये बिखरे नन्हें जूते, किताबें, स्कूल बैग…….

जाते हुए शिशिर अौर

आते हुए वसन्त ने पलाशों को खिला दिया।

जैसे ‘जंगल में आग’ लगा दिया।

पर ये फूल से नन्हें-मुन्ने  समय से पहले मुरझा क्यों गये?

आग बनने से पहले, राख में खो गये।

रह गये ‘टेसू के आग’ से टीस दिलों में………

शब्दार्थ- Word meaning

जंगल की आग,टेसू, पलाश – flower known as flame-of-the-forest, bastard teak.

शिशिर -Winter Season

वसन्त – Spring Season

टीस – twinge, suffering, pain, misery, ache.

Images from Internet.

Kahaani 2: Some Incidents in Childhood Can Haunt Every Facet of One’s Life for Decades to Come

 

Kahaani 2 is really hitting hard on the issue of child abuse and it’s life long impact on the personality of the person. Such things distort the personality and self-esteem. POSCO Act  is a law for protection of children from sexual offences .  Thanks Kahaani 2 for spreading awareness.

**Caution: Spoilers Ahead***

Ye raatein nayi purani, aate jaate kehti hai koi kahaanii sings Lata Mangeshar’s silvery voice in the background as Vidya Sinha writes in her diary, reliving past days filled with laughter and contentment, with her wheelchair-bound daughter, Mini. The sunny day in the sleepy little town of Chandan Nagar pulls you in as mother and daughter cook, laugh and cheat over a game of ludo. Vidya feels that things are falling into place after years. You find her admission of wanting to write in her diary after a long time cryptic, but you leavePlease click here to continue reading

तितलियों के देश में – बालकथा (Land of butterfly-story for children)


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नन्ही चाँदनी अपने खुबसूरत बगीचे में , बङे-बङे गेंदे अौर ङालिया के फूलों को निहार रही थी। गुलाबी जाङे में बगीचा खुशबूदार, रंगीन अौर ताजे फूलों से भरा था। हर क्यारी में अलग-अलग तरह के सुंदर फूल हवा के झोंकों के साथ झूम रहे थे। साथ हीं उन पर मंङरा रहीं थी रंगबिरंगी तितलियाँ।
चाँदनी, रेङ्ङी माली भईया से रोज कहती- “ ङालिया के फूलों को अौर बङा करो ना भईया”, अौर वह हँस कर कहता- “ हौब्बे नहीं करेगा – होगा हीं नहीं”। उसकी बातें सुन चाँदनी खिलखिला कर हँस पङती थी। उसे माली भईया की अटपटी हिंदी सुन कर बङा मज़ा आता था। उसके साथ खङी उसकी चिक्की दीदी दोनों की बातें सुन कर मुस्कुरा देती थी।

चिक्की दीदी को बगीचे में काम करना बङा पसंद था। इसलिये माली भईया के कुछ दिनों के लिये घर जाने पर, मम्मी ने यह काम उसे सौंप दिया था। आजकल हर शाम चिक्की दीदी बगीचे में पाईप से पानी ङालती। चाँदनी भी दीदी की मदद करती। फिर दीदी फूलों पर दवा अौर खाद स्प्रे करती। माली भईया घर से वापस लौटे तो हैरानी से बोल पङे – “ अरे, ङालिया के फूल तुम्हारे चेहरे से भी बङे कैसे हो गये ? तुमने जादू कर दिया क्या”? चाँदनी हँस पङी।
चाँदनी को तितलियों के पीछे दौङने में बङा अच्छा लगता था। अभी भी, चाँदनी की बङी-बङी आँखे, खुबसूरत रंगबिरंगी तितलियों का पीछा कर रही थीं। वह उनसे दोस्ती करना चाहती थी। इसलिये वह उन्हें पकङने के लिये उनके पीछे भागती रहती थी।

आज भी वह बङी देर तक उनके पीछे दौङती- भागती रही। पर वे तितलियाँ पकङ में हीं नहीं आ रहीं थीं। तभी उसकी नजर गुलाबों की क्यारी पर पङी। एक बङे-बङे पंखों वाली प्यारी, सुंदर सी तितली बङे आराम से गुलाबी गुलाब का रस पी रही थी। चाँदनी दबे पैर तितली के पास, पीछे से पहुँची। उसने धीरे-धीरे , चुपके से अपनी नन्हीं अंगुलियों से तितली के रंगीन परों को पकङ लिया। तितली बङे जोरों से पंख फङफङाने लगी। चाँदनी ङर गई। घबङा कर उसने तितली को छोङ दिया। तितली बङी तेज़ी से दूर आकाश में उङ गई।

अब तक चाँदनी तितलियों के पीछे भागती – भागती थक गई थी। पकङ में आई तितली के उङ जाने से वह उदास भी हो गई थी। उसके बाग में एक कटे पेङ का तना दो पत्थरों पर रख कर बेंच जैसा बना था। वह उस पर जा बैठी। फिर बगीचे में लगे छोटा से झूले पर जा कर आराम से बैठ गई।

झुले के पास के छोटे से पानी के टैंक में कमल का नीला फूल खिला था। उसमें बहुत सी छोटी -छोटी काली मौली मछलियाँ तैर रहीं थीं। टैंक के चारो अोर गुच्छे- गुच्छे फ्लौक्स के रंग- बिरंगे फूल खिले थे। चाँदनी मछलियों को देखती हुई झूला झूलने लगी।

तभी, उसने देखा, बगीचे वाली खुबसूरत, बङे-बङे पंखों वाली तितली नीले कमल के फूल पर आ कर बैठ गई अौर सुबक-सुबक कर रोने लगी। चाँदनी ने तितली को आवाज़ दे कर पूछा – “ तुम रो क्यों रही हो”। तितली ने जवाव दिया – “ मेरा नाम मोनार्क है। मुझे मेरे देश से निकाल दिया गया है”। “क्यों” – चाँदनी पूछ बैठी। सुबकते हुए तितली ने कहा – “ क्योंकि, तुम्हारे पकङने से मेरे पंखों के रंग निकल गये “। इसलिये तितलियों के देश की रानी ने मुझे निकाल दिया”।

चाँदनी को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा।मन हीं मन उसने सोंचा , अब वह कभी तितलियों को पकङ कर परेशान नहीं करेगी। उसकी नजरें अपनी अंगुलियों पर पङी। सचमुच उसकी अंगुलियों पर तितली के पंख के रंग लगे थे। उसने मोनार्क को अपनी अंगुलियों पर लगे रंग का धब्बा दिखाया। मोनार्क खुशी से बोल पङी, “अरे मेरे रंग तो सुरक्षित हैं। मैं इन्हें वापस ले सकती हूँ । तुम अपनी अंगुलियों को फिर से मेरे परों पर धीरे से रखो”।
चाँदनी ने वैसा हीं किया। मोनार्क अपने पंखों को हौले से चाँदनी की अंगुलियों पर रगङने लगी अौर सचमुच रंग पंखों पर वापस आ गये। मोनार्क अौर चाँदनी खुशी से खिलखिला कर हँसने लगी।

मोनार्क ने वापस जाने के लिये पंख फङफङाये अौर कहा – “चाँदनी अपनी आँखे बंद करो”। चाँदनी ने जब आँखें खोली तब हैरान रह गई। वह ढेरों तितलियों के बीच, उनके देश में थी। मोनार्क ने चाँदनी को तितलियों के पूरे जीवन चक्र के बारे में बताया अौर दिखाया, कैसे पत्तों पर वे अपने अंङे सुरक्षित रहने के लिये चिपका देतीं हैं। जिनसे लार्वा निकलता है। वह कुछ दिनों में वह प्युपा बन पेङ के तनों पर लटक जाते हैं अौर समय आने पर इन प्युपा का कायापलट हो जाता है। ये खुबसूरत तितलियों के रुप में अपने झिल्ली से बाहर आ जाते हैं। चाँदनी, आश्चर्य के साथ सारी बातें सुन रही थी।

life-cycle

फिर मोनार्क उसे अपनी रानी तितली के पास ले गई। रानी तितली ने चाँदनी को मोनार्क के रंगों को लौटाने के लिये धन्यवाद दिया । उसने चाँदनी को तोहफे में एक सुंदर पीला गुलाब दिया। तभी चाँदनी ने मम्मी के पुकारने की आवाज सुनी। उसने चौंक कर देखा। मम्मी उसे जगा रहीं थीं। वह शायद झूला झूलते हुए सो गई थी। तभी उसकी नजर झूले पर पङे पीले गुलाब पर पङी। वह सोंच में पङ गई, यह सपना था या सच्चाई? फिर उसने मन हीं मन सोंचा, जो भी हो अब वह तितलियों को कभी नहीं सतायेगी।

(बच्चों की अपनी एक   काल्पनिक दुनिया  (fantasy land) होती है।  इसलिये बाल मनोविज्ञान को समझते हुए , कहानी के माध्यम से  बच्चे बातें ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। यह कहानी बच्चों  को तितलियों के जीवन चक्र की जानकारी देती  है। साथ हीं यह बच्चों को  सह्रिदयता  का पाठ पढ़ाती है)

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Parenting: The Joy and The Challenge – Psychology


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What type of parent are you?

What type of parents were your parents?

What may be the root cause of your stress & anxiety?

This article is useful for parents, would be parents and people prone to mental illness or those who are suffering mental stress and anxiety. It may help in understanding the root cause and reasons of the issue/s.

Personality theories in Psychology explain that the first 5 years are extremely crucial in building the personality of an individual. These years are usually spent with a parent or another primary caregiver. Parenting or child rearing is the process of promoting and supporting the physical, emotional, social, financial, and intellectual development of a child from infancy to adulthood. It refers to the aspects of raising a child aside from the biological relationship.

Following are the 4 main types of parenting styles.

1.  Authoritarian parenting—(Restrictive, punishment-heavy parenting style)
These parents are demanding but less or not responsive. Authoritarian parents have very high demands and low responsiveness towards their children. Instead of getting feedback for their mistakes children are punished harshly, like being yelled at or corporal punishment. They implement strict rules that are expected to be followed unconditionally. Since the parent believes in authority, children are not given choices or options to achieve a certain goal.

Positive impact on children

Obedient to authority
May become good in following instructions
They may score well in school exams
May be less deviant in their behaviour

 

Negative impact on children

Feels problems in the absence of parental figure
Poor decision taking ability
Low confidence
Low social adjustment
Low self-esteem
Some children may show aggressive behaviour
Some others may show fearful/shy behaviour
Studies show that many may suffer from depression and anxiety.

 

2. Indulgent parenting(Permissive, non-directive or libertarian parenting style)
The parent is responsive but not demanding. Permissive parents are low in demands but high in responsiveness. These parents are more like a friend than a parental figure, so they provide few guidelines and rules. They are very loving and always treat their child like kids. Generally, they do not expect mature behaviour from their children. Sometimes, they may try to control their children with gifts, toys, money, food, chocolates etc.

Positive impact on children

Freedom to make choices
May have adequate self-confidence
May score well in school if interested

 

Negative impact on children

Poor self-regulation and self-control
Poor self-discipline
Believes in violating rules
Takes undue advantage of parents affection
Sometimes children develops blackmailing attitude
Poor social skills
Mostly feel insecure, as they have not learned the value of rules, boundaries and guidance
Generally very demanding self obsessed / involved and selfish
Unruly in school
Poor academics
Childish behaviour, lacks maturity
Unrealistic demands
Stubborn
Studies show they are prone to heavy drinking, drugs and other forms of misconduct

 

3. Neglectful parenting— (Uninvolved, detached, dismissive or hands-off parenting style)
Such parents are neither demanding nor responsive. They remain uninvolved, neglectful, and lack in responsiveness to a child’s needs. They are mostly indifferent, dismissive or even completely neglectful. These parents have little emotional involvement with their kids. Basic needs such as food and shelter are provided, but, emotional involvement is very restricted. A neglectful parent may not participate in the child’s school activities or may hardly interact with the child. At the same time, the degree of involvement may vary considerably from parent to parent. Hardly any rules or demands are made on the child too.

Positive impact on children

Some of them may become self learners.
May develop strong fulfilling relationships outside

 

Negative impact on children

Shy and withdrawn
Extremely low confidence
Prone to substance abuse, crime
Poor thinking ability
Poor emotional and social skills
Prone to stress, anxiety, and fear

 

4. Authoritative parenting— (Child – centred parenting style)
Such parents have reasonable demands and high responsiveness. The authoritative parenting style is usually identified as the most effective. It is flexible. In this style of parenting, the parent has reasonable demands and high responsiveness towards the child. Generally they have high expectations with their children, they also provide their children with resources and support that they need to succeed. These parents also encourage independence and using the child’s own reasoning and understanding. They also encourage their children to express their opinions and feelings.

The discipline method used is reasonable, consistent, and proportionate to the child’s action. Most importantly, the parent explains to the child the reason for disciplining in a logical manner. These parents act as role models and exhibit the same behaviours they expect from their children.

Positive impact on Children

Strong self-regulations skills
Adequate self-confidence
Learn new skills easily
Balanced emotional control
Adequate social skills
Independence in thought, emotion and behavior

 

Negative impact on children – (If parents are more demanding)

Children may be resentful and frustrated
May develop a fear of failure if too much pressure is present
These are thus the 4 main types of parenting that are identified by researchers. A parent can not always fit one category or the other. At the same time, achieving a balance in the interactions with your child is very important. These categories are not watertight compartments, and also differ based on the personality of the parent and child, and the culture in which parenting is taking place. If you feel that your relationship with your child is troubling you significantly, we recommend you seek professional help from a counselor as soon as you can.

 

 

http://www.acciohealth.com/learn/parenting-the-joy-and-the-challenge/

 

 

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जीवन में रिक्तता का अहसास- एमटी नेस्ट सिंड्रोम, मनोविज्ञन Empty nest syndrome – Psychology

empty-nest

Empty nest syndrome is a feeling of loneliness, depression, sadness, anxiety and grief in parents, when their children leave home for job, further studies or to live on their own.

एमटी नेस्ट सिंड्रोम – बङे होने पर बच्चे नौकरी, अध्ययन या घर बसाने के लिये माता-पिता से अलग हो जाते हैं। जिससे माता-पिता मानसिक तनाव, चिंता, दु: ख और अकेलापन महसूस करते हैं । जैसे पंक्षियों के बच्चे बङे होते हीं घोंसला छोङ कर उङ जातें हैं, वैसे हीं बच्चे बङे होने पर घर छोङ कर वैसे हीं रिक्तता का अहसास माता-पिता को देते हैं। यह सिंड्रोम माता-पिता में अवसाद, उदासी, और दु: ख की भावनाएँ भर देता है।महिलाओं में एमटी नेस्ट सिंड्रोम पुरुषों से अधिक पाया गया हैं.
प्रभाव
1. जीवन के उतर्राध की समस्याँए
2. कुछ खोने की भावना
3. अवसाद और चिंता
4. आत्म पहचान खोने की भावना
5. वैवाहिक जीवन पर कुप्रभाव
6. महिलाओं में आम

सकारात्मक प्रभाव –
बच्चों के ना रहने से पारिवारिक काम के दायित्व अौर उससे संबंधित समस्याअों मे कमी आती है। जिससे माता-पिता को एक दूसरे के साथ जुड़ने के लिए नये अवसर मिलते है। फलतः आपसी संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पङता है।

1. पारिवारिक काम के बोझ में कमी –
2. परिवार संघर्ष में कमी
3. संबंधों में सुधार –

 

समाधान

1. सच्चाई स्विकार करते हुए अपने आप को परिवर्तन के लिए अनुकूल करने का प्रयास करना चाहिये।
2. बड़े फैसले तब तक स्थगित करना चाहिये, जब तक मनःस्थिति अनुकूल ना हो। यह तनाव के स्तर को कम रखेगा। उदाहरण के लिये बच्चों के साथ रहने का निर्णय या बड़ा घर बेच कर छोटे घर में रहने का निर्णय आदि तभी लेना चाहिये, जब मन शांत हो जाये।
3. मित्रों और सहयोगियों से मिलना जुलना व संबंध बनाना चाहिये।
4. एक ऐसी बातों की सूची बनाएँ जो आप कभी करना चाहते थें। अपने
रुचि, शौक अौर शगल को फिर से जीवन में लायें।
5. अपनी हाबी को पुनः जीवित करें। लेखन, चित्रकला, संगीत जो भी चाहें, शौक को आगे बढ़ायें।
6. प्राणायाम, योग, व्यायाम आदि जरुर करें।
7. सकारात्मक दृष्टिकोण अपनायें।

 

सुझाव –

कुछ लोग अतिसंवेदनशील होते हैं। उनके लिये यह समस्या स्वंय सुलझाना सरल नाहीं होता है। ऐसे अभिभावकों को काउन्सिलर की मदद लेनी चाहिये।

 

 

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आशु की जादुई घड़ी ( बाल मनोविज्ञान और बॉडी क्लॉक पर आधारित कहानी ) #ChildrensDay

(यह कहानी बच्चों को बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति के बारे में जानकारी देती है। यह कहानीबच्चों के साथ-साथ बड़ों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि  यह कहानी बतलाती है कि, बाल मनोविज्ञान को समझते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को अच्छी बातें सरलता से सिखलायी जा सकती हैं। सही तरीके और छोटी-छोटी प्रेरणाओं की सहायता से बच्चों को समझाना बहुत आसान होता है। यह कहानी इन्ही बातों पर आधारित है। बाल दिवस – १४  नवंबर, के अवसर पर ।)

नन्हा आशु थोड़ी देर पहले ही जागा था। वह कमरे से बाहर आया, तभी उसने दादी को बाहर से आते देखा। दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे, तू जाग गया है?” आशु ने पूछा- दादी तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थी? दादी ने कहा- “मैं रोज़ सुबह मंदिर जाती हूँ बेटा। ये ले प्रसाद।” दादी ने उसके हथेली पर बताशे और मिश्री रख दिये। आशु को बताशे चूसने में बड़ा मज़ा आ रहा था। यह तो नए तरह की टाफ़ी है। उसने मन ही मन सोंचा।

उसके मन में ख्याल आया कि अगर वह दादी के साथ मंदिर जाए, तब उसे और बताशे-मिश्री खाने के लिए मिलेंगे। कुछ सोचते हुए उसने दादी से पूछा – ‘दादी, मुझे भी मंदिर ले चलोगी क्या?” दादी ने उसे गौर से देखते हुए कहा –“तुम सुबह तैयार हो जाओगे तो जरूर ले चलूँगी।‘ दादी पूजा की थाली लिए पूजा-घर की ओर बढ़ गईं। “दादी मेरी नींद सुबह कैसे खुलेगी? बताओ ना”- आशु ने दादी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए पूछा। तुम रोज़ सुबह कैसे जाग जाती हो?

दादी ने हँस कर पूछा-“और बताशे-मिश्री चाहिए क्या?” आशु ने सिर हाँ में हिलाया। दादी ने उसके मुँह में बताशे डाल कर कहा – ‘मेरे तकिये में जादुई घड़ी है बेटा। वही मुझे सुबह-सुबह जगा देती है। अगर तुम्हें सुबह जागना है। तब रात में मुझ से वह तकिया ले लेना। सोते समय सच्चे मन से तकिये को अपने जागने का समय बता कर सोना। वह तुम्हें जरूर जगा देगा। लेकिन एक बात का ध्यान रखना। रात में देर तक मत जागना। क्यों दादी?– आशु ने पूछा। दादी ने जवाब दिया – “वह इसलिए ताकि तुम्हारी नींद पूरी हो सके। वरना तकिये के जगाने के बाद भी तुम्हें बिस्तर से निकलने का मन नहीं करेगा।“

आशु मम्मी-पापा के साथ दादा-दादी के पास आया था। उसके स्कूल की छुट्टियाँ चल रही थी। वह दादी के जादुई तकिये की बात से बड़ा खुश था क्योंकि उसे रोज़ सुबह स्कूल के लिए जागने में देर हो जाती थी। जल्दीबाजी में तैयार होना पड़ता। मम्मी से डांट भी पड़ती। कभी-कभी स्कूल की बस भी छूट जाती थी।

रात में वह दादी के पास पहुँचा। बड़े ध्यान से उनके बिस्तर पर रखे हुए तकियों को देख कर सोंच रहा था – इनमें से कौन सा तकिया जादुई है? देखने में तो सब एक जैसे लग रहे हैं। तभी मम्मी ने पीछे से आ कर पूछा – ‘तुम यहाँ क्या कर रहे हो आशु? तुम्हारा प्रिय कार्टून कार्यक्रम टीवी पर आ रहा है।“ आशु ने जवाब दिया – “नहीं मम्मी, मैं आज देर रात तक टीवी नहीं देखूंगा। आज मुझे समय पर सोना है।“ मम्मी हैरानी से उसे देखती हुई बाहर चली गईं।

आशु ने दादी की ओर देखा। दादी ने एक छोटा तकिया उसकी ओर बढ़ाया और पूछा – “तुमने खाना खा लिया है ना?” आशु ने खुशी से तकिये को बाँहों में पकड़ लिया और चहकते हुए कहा –“हाँ दादी। मैंने खाना खा कर ब्रश भी कर लिया है दादी।“ वह अपने कमरे में सोने चला गया। वह तकिये को बड़े प्यार से सवेरे जल्दी जगाने कह कर सो गया।

अगले दिन सचमुच वह सवेरे-सवेरे जाग कर दादी के पास पहुँच गया। दोनों तैयार हो कर मंदिर चले गए। मंदिर में एक बड़ा बरगद का पेड़ था। बरगद के लंबी-लंबी जटाएँ जमीन तक लटकी हुईं थीं। पेड़ पर ढेरो चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी। बगल में गंगा नदी बहती थी। आशु को यह सब देखने मे बड़ा मज़ा आ रहा था। दादी नदी से लोटे में जल भरने सीढ़ियों से नीचे उतर गईं। आशु बरगद की जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने लगा। दादी लोटे में जल ले कर मंदिर की ओर बढ़ गईं। आशु दौड़ कर दादी के पास पहुँच कर पूछा – ‘दादी तुम मेरे लिए जल नहीं लाई क्या?” दादी मुस्कुरा पड़ी। उन्होंने पूजा की डलिया से एक छोटा जल भरा लोटा निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया। वह दादी का अनुसरण करने लगा। पूजा के बाद दादी ने उसे ढेर सारे बताशे और मिश्री दिये।

आशु दादी के साथ रोज़ मंदिर जाने लगा। जादुई तकिया रोज़ उसे समय पर जगा देता था। दरअसल आशु को सवेरे का लाल सूरज, ठंडी हवा, पेड़, पंछी, नदी, प्रसाद और मंदिर की घंटिया सब बड़े लुभावने लगने लगे थे। आज मंदिर जाते समय दादी ने गौर किया कि आशु कुछ अनमना है। उन्हों ने आशु से पूछा – आज किस सोंच मे डूबे हो बेटा?” आशु दादी की ओर देखते हुए बोल पड़ा – “दादी, अब तो मेरी छुट्टियाँ समाप्त हो रही है। घर जा कर मैं कैसे सुबह जल्दी जागूँगा? मेरे पास तो जादुई तकिया नहीं है।‘

दादी उसका हाथ पकड़ कर नदी की सीढ़ियों पर बैठ गईं। दादी प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहने लगी – “आशु, मेरा तकिया जादुई नहीं है बेटा। यह काम रोज़ तकिया नहीं बल्कि तुम्हारा मन या दिमाग करता है। जब तुम सच्चे मन से कोशिश करते हो , तब तुम्हारा प्रयास सफल होता है। यह तुम्हारे मजबूत इच्छा शक्ति का कमाल है। जब हम मन में कुछ करने का ठान लेते है, तब हमारी मानसिक शक्तियाँ उसे पूरा करने में मदद करती हैं। हाँ आशु, एक और खास बात तुम्हें बताती हूँ। दरअसल हमारा शरीर अपनी एक घड़ी के सहारे चलता है। जिससे हम नियत समय पर सोते-जागते है। हमें नियत समय पर भोजन की जरूरत महसूस होती है। जिसे हम मन की घड़ी या बॉडी क्लॉक कह सकते हैं। यह घड़ी प्रकृतिक रूप से मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों सभी में मौजूद रहता है। इसे अभ्यास द्वारा हम मजबूत बना सकतें हैं।“

आशु हैरानी से दादी की बातें सुन रहा था। उसने दादी से पूछा –“ इसका मतलब है दादी कि मुझे तुम्हारा तकिया नहीं बल्कि मेरा मन सवेर जागने में मदद कर रहा था? मैं अपनी इच्छा शक्ति से बॉडी क्लॉक को नियंत्रित कर सवेरे जागने लगा हूँ?” दादी ने हाँ मे माथा हिलाया और कहा – “आज रात तुम अपने मन में सवेरे जागने का निश्चय करके सोना। ताकिया की मदद मत लेना। रात में सोते समय आशु नें वैसा ही किया, जैसा दादी ने कहा था। सचमुच सवेरे वह सही समय पर जाग गया। आज आशु बहुत खुश था। उसने अपने मन के जादुई घड़ी को पहचान लिया था।

 

 

 

Source: आशु की जादुई घड़ी ( बाल मनोविज्ञान और बॉडी क्लॉक पर आधारित कहानी )

पोक्सो- बच्चों के लिए कानून ( महत्वपूर्ण जानकारी ) समाचार आधारित

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हमारे देश में बच्चों के लिए कड़े कानून की जरूरत कई बार महसूस की गई। पहले भारत में बाल मुकदमों की प्रक्रिया जटिल और थकाने वाला था। अतः भारत की संसद अधिनियम में 22 मई 2012 को बाल यौन शोषण के खिलाफ बच्चों का संरक्षण कानून पारित किया।

आज विश्व में बच्चों की सब से बड़ी आबादी भारत में है । हमारे देश में लगभग 42 प्रतिशत आबादी अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की है। अतः बच्चों का स्वास्थ्य और सुरक्षा महत्वपूर्ण है। ये बच्चे भविष्य की अनमोल निधि है।
यह अधिनियम अठारह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बनाया गया है। यह बच्चों के स्वस्थ, शारीरिक, भावनात्मक , बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने को महत्व देता है। बच्चे के साथ मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न या दुर्व्यवहार दंडनीय है। इस अधिनियम के तहत कठोर दंड का प्रावधान है ।

बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों को नियंत्रित करने के लिए “प्रोटेक्सन ऑफ चिल्ड्रेन फ़्रोम सेक्सुयल ओफ़ेंसेस” कानून बनाया गया। यह दो वर्ष पहले बच्चों के सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून है। पर यह कानून बहुत कम लोगों को मालूम है। अतः इसका पूरा फ़ायदा लोगों को नहीं मिल रहा है। इसलिए लोगों के साथ-साथ बच्चों और सभी माता-पिता को भी इसकी समझ और जानकारी दी जानी चाहिए। साथ ही बच्चों में सही-गलत व्यवहार की समझ और निर्भीकता भी विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सभी माता-पिता बच्चों की सभी बातों को सुने और समझे।
लोगों में जागरूकता लाने के लिए मीडिया, लेखकों, पत्रकारों को सहयोग महत्वपूर्ण है। अतः कलम की ताकत का भरपूर उपयोग करना चाहिए।

 

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चाँदनी अौर साल्मन ( बाल कथा -बाल मनोविज्ञान ) Chandni and Salmon -story for children, based on child psychology.

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स्कूल बैग बालू पर फेंक कर वह एक चट्टान पर पर जा कर बैठ गई। उसकी आँखों से आँसू बह रह थे। उसने स्कूल के कपड़े भी नहीं बदले थे। उसके आँसू समुन्द्र के पानी में टपक कर उसे और भी खारा बना रहे थे। समुद्र की चाँदी जैसी झिमिलाती लहरें चट्टान से टकरा कर शोर मचाती वापस लौट रहीं थीं।

9 वर्ष की चाँदनी रोज़ स्कूल की छुट्टी के बाद भागती हुई समुन्द्र के किनारे आती थी। यह उसका रोज़ का नियम था। पिछले महीने ही जब उसे शहर के सब से अच्छे स्कूल में दाखिला मिला तब वह खुशी से नाच उठी थी। उसके माता-पिता भी बहुत खुश थे। चाँदनी बहुत मेधावी छात्रा थी। उसके माता-पिता उसे बहुत अच्छी और ऊंची शिक्षा देना चाहते थे। पर छोटे से गाँव में यह संभव नहीं था।

इसीलिए इस स्कूल में दाखिला के लिये चाँदनी ने बहुत मेहनत की थी। पर तब उसे यह कहाँ पता था कि हॉस्टल में रहना इतना खराब लगेगा। नया स्कूल भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था।वैसे तो स्कूल बड़ा सुंदर था। आगे बहुत बड़ा खेल का मैदान था। पीछे एक बड़ा बगीचा था। स्कूल कंटीले तारों से घिरा था। स्कूल के पीछे था बालू और फिर फैला था नीला, गहरा समुद्र।

मम्मी-पप्पा से दूर, उसे यहाँ बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। यहाँ न तो कोई टीचर उसे पहचानते थे, न कोई अच्छी सहेली थी। पुराने स्कूल की वह सबसे अच्छी छात्रा थी। सभी टीचर उसे पहचानते थे और सभी उसे बहुत प्यार करते थे। क्लास के शरारती और कम अंक लाने वाले बच्चों को उसका उदाहरण दिया जाता था। सहेलियां पढ़ाई में उसकी मदद लेती रहती थीं । राधा बुआ ने तो अपनी बेटी श्रेया को हमेशा चाँदनी के साथ रहने कह दिया था, ताकि वह भी चाँदनी की तरह होनहार और होशियार बन सके।

हॉस्टल के हर खाने का स्वाद उसे एक जैसा लगता था। माँ के हाथों के स्वादिष्ट खाने को याद कर उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे और वह बिना खाये ही उठ जाती थी। उसे सिर्फ शनिवार का दिन अच्छा लगता था क्योंकि उस दिन छुट्टी होती थी। साथ ही यह घर से फोन आने का दिन भी होता था। मम्मी पप्पा के फोन का इंतज़ार करते हुए सोचती रहती कि इस बार वह उन्हें साफ-साफ बोल देगी कि वह यहाँ नहीं रहना चाहती है। पर मम्मी की आवाज़ सुन कर ही समझ जाती कि वे अपनी रुलाई रोक रहीं हैं। पप्पा की बातों से भी लगता कि वे उसे बहुत याद करतें हैं। पप्पा उसे बहादुर, समझदार और न जाने क्या- क्या कहते रहते। वे उसके उज्ज्वल भविष्य की बातें समझाते रहते और वह बिना आवाज़ रोती रहती।

आज़ उसे गणित के परीक्षा में बहुत कम अंक मिले थे। उसकी शिक्षिका हैरानी से उसे देख रहीं थीं क्योंकि वह चाँदनी के क्लास परफॉर्मेंस से वह बहुत खुश थीं। उन्हें मालूम था कि चाँदनी बहुत ज़हीन छात्रा है। उन्हों ने चाँदनी को बुला कर प्यार से समझाया भी। पर आज वह इतनी दुखी थी कि उसे कुछ भी सुनना अच्छा नहीं लग रहा था। इतने कम अंक तो उसे कभी नहीं आए थे। आज़ सागर किनारे बैठे-बैठे उसे लग रहा था कि वह मम्मी-पप्पा के सपने को साकार नहीं कर पाएगी। उसे अपनी योग्यता पर शक होने लगा था।

आज़ उसका मन वापस हॉस्टल जाने बिल्कुल नहीं था। आँखों से बहते आँसू उसके गुलाबी गालों से बह कर पानी में टपक रहे थे। अचानक उसे मीठी और महीन आवाज़ सुनाई दी, जैसे उससे कोई कुछ पूछ रहा है। हैरानी से वह नज़र घुमाने लगी। पर कुछ समझ नहीं आया। तभी आवाज़ फिर सुनाई दी- “तुम कौन हो? क्यों रो रही हो?”

चाँदनी ने हैरानी से नीचे पानी में चाँदी जैसी चमकती एक सुंदर मछली को देखा। तो क्या यह इस मछली की आवाज़ है? पर उसे विश्वाश नहीं हुआ। उसने आँसू से धुंधली आँखों को हथेलियों से पोछ कर फिर से देखने की कोशिश की। एक सुंदर झिलमिलाती मछ्ली पानी की सतह पर तैर रही थी। मछ्ली के रुपहले शरीर पर पड़ती सूरज की किरणे उसे और चमकदार और सुंदर बना रहीं थीं। यह मछली शायद बड़ी चुलबुली थी। वह कभी पानी के सतह पर आती कभी अंदर डुबकी लगा लेती। वह लगातार इधर-उधर शरारत से तैर रही थी। चाँदनी रोना भूल कर मछली को निहारने लगी। एक बार तो मछली पानी से बाहर ऊपर उसके करीब कूद कर वापस पानी में चली गई। चाँदनी को मछली की हरकतों को देखने में इतना मज़ा आ रहा था कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा। अचानक मछली के पंखो पर डूबते सूरज की लालिमा चमकते देख चाँदनी ने नज़रे उठाई। शाम ढाल रही थी। वह घबरा गई। वह बैग उठा कर स्कूल हॉस्टल की ओर लपकी। गनीमत था कि किसी ने ध्यान नहीं दिया कि वह वह बहुत देर से हॉस्टल से बाहर थी। रात में बिस्तर पर लेटे-लेटे सोचती रही कि क्या सचमुच वह मछली बोल रही थी। सपने में भी उसे वही मछली नज़र आती रही।

अगली दिन स्कूल के बाद वह दौड़ती हुई समुद्र के किनारे चट्टान पर पहुँच गई। आज उसकी आँखों में आँसू नहीं, उत्सुकता थी। उसकी आँखें उसी मछली को खोज रही थीं । पर वह नज़र नहीं आई। चाँदनी मायूस हो गई। तभी अचानक मुँह से बुलबुले निकालती वही मछली पानी की सतह पर आ गई। चाँदनी एकाएक पूछ बैठी- तुम ने इतनी देर क्यों लगाई? तुम्हारा नाम क्या है?

मछली जैसे जवाब देने को तैयार बैठी थी। उसने कहा- मैं सैल्मन मछली हूँ । मेरा नाम चमकीली है। मैं इस समुद्र में रहती हूँ। तुम कौन हो? चाँदनी हैरान थी। अरे! यह तो सचमुच बातें कर रही है। चाँदनी ने उसे अपना नाम बताया। दोनों ने ढेर सारी बातें की। सैल्मन उसे सागर के अंदर की दुनियाँ के बारे मे बताने लगी कि वह भोजन की तलाश में समुद्र में दूर-दूर तक तक जाती है। आज भी वह भोजन की तलाश में दूर निकाल गई थी। इसीलिए उसे यहाँ आने में देर हो गई।

थोड़ी देर मे चाँदनी सैल्मन को बाय-बाय कर गाना गुनगुनाते हुए हॉस्टल लौट चली।आज चाँदनी खुश थी क्योंकि उसे एक सहेली जो मिल गई थी। अब वह अक्सर सागर किनारे अपनी सहेली से बातें करने पंहुच जाती थी। उसे दिन भर की बातें और अपनी परेशानियाँ बताती थी। सैल्मन उसकी बातें सुनती रहती और पानी की सतह पर इधर -उधर तैरती रहती। कभी अपना मुँह गोल कर बुलबुले निकलती। उसकी चुलबुली हरकतों को देख कर चाँदनी अपनी सारी परेशानियों को भूल, खिलखिला कर हँसने लगती और हॉस्टल से चुपके से लाये रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े सैल्मन को देने लगती। बहुत बार सैल्मन पानी से ऊपर कूद कर रोटी के टुकडों को मुँह में पकड़ने की कोशिश करती तो चाँदनी को बड़ा मज़ा आता। वह सोचने लगती, काश वह भी मछली होती। तब जिंदगी कितनी अच्छी होती। मज़े मे अपने घर मे रहती। जहाँ मन चाहे तैरती रहती।

अगली शाम उसे सैल्मन के चमकते पंखो पर कुछ खरोचें नज़र आई। पूछने पर सैल्मन ने बताया कि वह मछुआरों के जाल मे फँस गई थी। पर जाल में एक छेद होने कि वजह से किसी तरह से बाहर निकल गई। ये खरोचें उसी जाल के तारों से लग गए हैं । सैल्मन ने कहा -” शुक्र है मेरी जान बच गई।” चाँदनी सिहर उठी। वह बोल पड़ी- चमकीली क्या सागर में तुम्हें खतरे भी है? सैल्मन ने कहा- सागर में खतरे ही खतरे हैं। बड़ी- बड़ी मछलियां, शार्क, सील और मछुआरों के जालों जैसे खतरे हमेशा बने रहते हैं।

अचानक चाँदनी को सैल्मन होने की अपनी कल्पना पर अफसोस होने लगा। उसकी ज़िदगी तो में तो ऐसी कोई परेशानी ही नहीं थी। उसे तो सिर्फ मन लगा कर पढ़ाई करना है। आज उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह अच्छी तरह से पढ़ाई करेगी। अब उसे स्कूल पहले से अच्छा लगने लगा था और पढ़ाई में भी मन लगने लगा था। पर घर की याद उसे हमेशा सताते रहती थी।

शनिवार को सुबह- सुबह ही मम्मी-पप्पा का फोन आ गया। पप्पा ने अच्छी और बुरी दोनों खबरें सुनाई। बुरी खबर थी कि मम्मी को बुखार था। उनकी आवाज़ भी भारी थी। उसका मन उदास हो गया। पर अपनी प्यारी बिल्ली किटी के तीन प्यारे,सुंदर और सफ़ेद बच्चों के होने की खबर से वह खुश हो गई। पप्पा से उसने प्रश्नो की झड़ी लगा दी।

बहुत दिनों बाद चाँदनी की चहकती आवाज़ सुन पप्पा भी हँस-हँस कर उसकी बातों का जवाब देते रहे। उसने पप्पा को बताया कि उसे क्लास- टेस्ट में वहुत अच्छे अंक आए है और उसके परीक्षा की तिथि भी बता दी गई है। परीक्षा खत्म होते ही स्कूल में लंबी छुट्टी हो जाएगी। तब वह घर आएगी। तब किटी और उसके बच्चों के साथ खूब खेलेगी। वास्तव में उसे परीक्षा से ज्यादा इंतज़ार छुट्टियों की थी। पर फोन रखते ही उसे रोना आने लगा। उसका मन करने लगा कि वह उड़ कर घर पंहुच जाये।

वह आँसू भरी आँखों के साथ चट्टान पर जा बैठी और चमकीली को आवाज़ देने लगी। पर चमकीली का कहीं पता नहीं था। चाँदनी ज़ोरों से डर गई। उसे सैल्मन के जाल में फँसनेवाली घटना याद आ गई। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। उसे पता ही नहीं चला की सुबह का सूरज कब ऊपर चढ़ आया। अचानक उसके चेहरे पर पानी के छींटे पड़े। उसने दोनों हथेलियो के उल्टी तरफ से अपनी आँखें पोछने की कोशिश की। तभी उसकी नज़र चमकीली पर पड़ी। वह अपनी पूंछ से उसकी ओर पानी उछाल रही थी। चमकीली ने घबराई आवाज़ में पूछा- तुम आज सुबह-सुबह कैसे आ गई? इतना रो क्यों रही हो?

चमकीली को देख कर चाँदनी का डर गुस्से में बदल गया। सुबकते हुए, नाराजगी से उसने कहा-” तुम ने आने में इतनी देर क्यों लगाई। मैं तो डर गई थी। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती हूँ। तुम्हारे सिवा यहाँ मेरा कौन है? मेरे मम्मी-पप्पा यहाँ से बहुत दूर है।” चमकीली ने हँस कर कहा -” बस इतनी सी बात? आज तो एक शार्क मेरे पीछे ही पड़ गई थी। उससे बचने के लिए मैं सागर की अतल गहराई में मूंगा चट्टानों के बीच जा कर छुप गई थी। अभी-अभी मेरी सहेलियों के मुझे बताया, तुम मुझे आवाज़ दे रही हो।” चाँदनी को अभी भी सुबकते देख कर चमकीली उसे बहलाते हुए बोली- “अरे, तुम तो बहादुर और समझदार लड़की हो। इतनी छोटी-छोटी बातों से मत घबराओ। तुम्हें बहुत पढ़ाई करनी है और जिंदगी में बहुत आगे बढ़ाना है।”

अभी भी चाँदनी की बड़ी-बड़ी सुंदर आँखों से गाल पर टपकते आँसू देख कर चमकीली ने कहा- “अच्छा, आराम से बैठो। मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनती हूँ । तब तुम्हें समझ आएगा कि छोटी-छोटी बातों से नहीं घबराना चाहिए। तुम्हें तो दुनिया की सब सुविधाएँ मिली हैं । राह दिखाने के लिए मम्मी-पप्पा हैं । तुम्हें तो बस मन लगा कर पढना है।”

तुम्हारी कहानी? चाँदनी ने आश्चर्य से पूछा। तुम तो अपने मम्मी-पप्पा और ढेरो सहेलियों के साथ इस खूबसूरत समुद्र में इठलाते रहती हो। तुम क्या जानो मेरी परेशानियां। मुझे घर से दूर हॉस्टल में रहना पड़ता है। ढेरो पढ़ाई करनी पड़ती है। फिर ऊपर से परीक्षा की मुसीबत भी रहती है। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि थोड़े ही दिनों में मेरी छुट्टियाँ होनेवाली हैं। फिर मैं घर जाने वाली हूँ। लेकिन तुरंत ही चाँदनी उत्सुकता से आँखें गोल कर बोल पड़ी- “अच्छा, चलो अपनी कहानी जल्दी मुझे सुनाओ।” सैल्मन पानी पर गोल-गोल चक्कर लगा कर सतह पर बिल्कुल चाँदनी के सामने आ गई। फिर मुँह से ढेर सारे बुलबुले निकाल कर कुछ याद करने लगी।

चमकीली कुछ सोचते-सोचते बोलने लगी-” जानती हो चाँदनी, मेरा घर यहाँ से सैकड़ो मील दूर ताजे पानी के झरने और नदियों में है। मेरे माता-पिता तो इस दुनियां में हैं ही नहीं। हमें तो हर बात अपने आप ही सीखना होता है। पूरी ज़िंदगी हम अपना रास्ता स्वयं खोजते हैं। हम जन्म तो ताज़े पानी की नदियों में लेते हैं, पर उसके बाद हम नदियों के बहाव के साथ समुद्र में चले आते हैं । यह विशाल सागर हमारे लिए एकदम अनजान होता है। हमें राह दिखने वाला कोई नहीं होता है। यह विस्तृत सागर देखने में तो सुंदर है। पर खतरों से भरा होता है। हर तरफ शिकारी हम जैसी मछलियों को पकड़ने की ताक में रहते हैं। हमारी एक भूल भी जानलेवा हो सकती है।”

मेरा जन्म यहाँ से बहुत दूर एक ताज़े पानी के झरने में हुआ था। मेरी माँ ने झरने की गहराइयों में घोसलें में अंडे के रूप में मुझे जन्म दिया। चाँदनी पूछ बैठी-” घोंसला? वह तो चिड़ियों का होता है। पानी के अंदर कैसे घोंसला बनता है?’ सैल्मन शरारत से चाँदनी के एकदम सामने तक कूद कर पानी के छींटे उडाती वापस पानी के अंदर चली गई। फिर वह चाँदनी को समझाने लगी-” हमारा घोंसला चिड़ियों की तरह तिनकों का नहीं, बल्की कंकड़ों का होता है। मेरी माँ ने झरने के तल में एक छोटे से स्थान को अपनी पूंछ से साफ किया। फिर गड्ढा बनाया कर चारो ओर से कंकड़ो से घेर कर घोंसला बनाया था। उस घोंसले में मेरी माँ ने ढेरो अंडे दिए। इस तरह अंडे के रूप में मेरा जन्म हुआ। मेरे माता-पिता ने कुछ हफ्ते हमारी और घोंसले की देख-भाल की। उसके बाद उनकी मृत्यु हो गई।”

चाँदनी आश्चर्य से सैल्मन को देख रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। पर उसने चुपके से उन्हे पोंछ लिया। इतने दर्दनाक जीवन की शुरुआत के बाद चमकीली जब इतना मस्त रहती है। तब चाँदनी का इतना कमजोर होना अच्छा नहीं है। उसे भी चमकीली की तरह समझदार और साहसी बनाना होगा। चाँदनी ने पूछा –” फिर?”

चमकीली ने अपनी कहानी आगे बढ़ाई। वह बोली-‘ कुछ समय बाद मैं अंडे से बाहर आई। तब मैं बिलकुल छोटी थी ।तब अक्सर मैं और मेरे भाई-बहन कंकड़ो और चट्टानों के बीच दुबके रहते थे। क्योंकि हमारे चारो ओर खतरा ही खतरा था। बड़ी मछलियाँ, कीड़े और पंछी हमें खाने की ताक में रहते थे। चट्टानों, पत्थरो और पौधों के बीच छुप कर मैंने अपना बचपन गुजारा।

जब मैं अंडे से निकली थी तब मुझे तैरना भी नहीं आता था। मै अपना पूंछ हिला कर घोंसले में ही इधर-उधर करती रहती थी। धीरे-धीरे मैंने तैरना सीखा।” चाँदनी ने आश्चर्य से पूछा –”चमकीली, तब तुम्हें खाना कौन देता था?” “अरे बुद्धू, हमें तुम बच्चों जैसा खाना बना कर देनेवाला कोई नहीं होता है। हम जिस अंडे से निकलते हैं। उसका कुछ हिस्सा हमारे पेट के साथ लगा रहता है। वही हमारा भोजन होता है-” चमकीली ने समझाया। फिर उसने कहा-“जानती हो चाँदनी, मेरा वह झरना बहुत सुंदर था। जैसे तुम्हें अपना घर याद आता है वैसे ही मुझे भी अपना झरना याद आता है। जैसे तुम अपने घर जाना चाहती हो, वैसे ही मुझे भी एक दिन अपने घर जाना है। मेरा झरना विशाल था। ऊपर पहाड़ पर जमा बर्फ गल कर झरने के रूप में बहता था। झरने से मीठी कल-कल की आवाज़ गीत जैसी लगती थी। मेरा झरना एक विशाल नदी में गिरता था, जिसका नीला, ठंडा और निर्मल पानी इतना साफ था कि उसकी तल साफ नज़र आती थी।”

चाँदनी अब चट्टान पर पेट के बल लेट कर बड़े ध्यान से सुन रही थी। वह ठुड्डी को दोनों हथेलियों पर टिका कर कोहनी के बल लेट गई थी। चमकीली की बात सुन कर वह बोली-” इतने साफ पानी में तैरने में बड़ा मज़ा आता होगा?” चमकीली बोली-” मज़ा? अरे मज़ा से ज्यादा तो खतरा रहता था। शिकारियों से छुपने और बच कर भागने में बडी मुश्किल होती थी।

थोड़े बड़े होने पर मैं अपने मित्रो के साथ झुंड बना कर खाने के खोज में बाहर निकलने लगी। फिर हमारा झुंड नदी की धार के साथ आगे बढ़ने लगा। हम सभी नदी के मुहाने पर पहुँचने के बाद कुछ समय वहीं रुक गए। हमारे आगे विशाल सागर लहरा रहा था।” चाँदनी ने कहा-” रुको-रुको, तुम पहले मुझे बताओ ‘मुहाने’ का क्या मतलब होता है? और तुम वहाँ पर रुक क्यों गई?” चमकीली ने पानी से बाहर छलाँग लगाई, पूंछ से चाँदनी के चेहरे पर पानी के छीटे उड़ाती हुई वापस छपाक से पानी के अंदर चली गई। चाँदनी खिलखिला कर हँसने लगी और बोली- चमकीली, शैतानी मत करो। नहीं तो मैं भी पानी में कूद पड़ूँगी।’ सैल्मन ने हड्बड़ा कर कहा-” चाँदनी, भूल कर भी ऐसा मत करना। यह सागर बड़ा गहरा है और तुम्हें तैरना भी नहीं आता है। जब तुम बड़ी हो जाओगी और तैरना सीख लोगी तब समुद्र में गोते लगाना। तब तुम समुन्द्र और हमारे बारे में पढ़ाई भी करना।” अच्छा-अच्छा अब आगे बताओ न चमकीली –चाँदनी बेचैनी से बोल पड़ी।

सैल्मन ने समझाया- “चाँदनी, मुहाना वह जगह है जहाँ नदी सागर में मिलती है। अर्थात समुद्र और नदी का मिलन स्थल। यहाँ तक पानी मीठा होता है। जबकि सागर का पानी नमकीन होता है। यहाँ पर कुछ समय तक रह कर हम अपने-आप को नमकीन पानी में रहने लायक बनाते हैं। तभी हम समुद्र में रह पाते है। हम झुंड में लगभग एक वर्ष की आयु तक मुहाने पर रहते हैं। फिर हम सब समुद्र की ओर बढ़ जाते हैं। अगले कुछ वर्षो तक समुद्र ही हमारा घर बन जाता है।” सैल्मन ने समझदारी के साथ समझाया।

फिर अचानक चमकीली ने चाँदनी से पूछा- “चाँदनी, आज तुम मेरे लिए रोटी लाना भूल गई क्या? चाँदनी के पेट में भी चूहे कूद रहे थे। चाँदनी को याद आया कि आज उसने नाश्ता ही नही किया है। पापा- मम्मी से बातें करने के बाद से वह यहाँ आ गई है। अब दोपहर हो गया है। चाँदनी घबरा गई।हॉस्टल में सभी उसे खोज रहे होंगे। चाँदनी ने जल्दीबाजी में सैल्मन से कहा-‘ चमकीली, अब मुझे जाना होगा। बड़ी देर हो गई है। तुम्हारी बाकी कहानी बाद में सुनूगीं। ठीक है न? बाय- बाय सैल्मन !”

वह तेज़ी से भागते हुए स्कूल के पीछे के बाउंड्री के पास पहूँची जो कटीले तारों का बना था। उन तारों के ऊपर बसंत-मालती की लताएँ फैली थी। लताओं पर गुच्छे के गुच्छे खूबसूरत सफ़ेद-गुलाबी बसंत मालती के फूल झूल रहे थे। फूलों की खुशबू चारो ओर फैली हुई थी। उसे ये फूल और इनकी खुशबू बहुत पसंद थी। पर अभी उसका ध्यान कहीं और था। उसने बड़ी सावधानी से एक जगह की लताओं को उठाया और अपने छुपे छोटे से रास्ते से लेट कर सरकती हुई अंदर चली गई। अंदर जा कर उसने अपने कपड़े में लगे बालू को झाड़ा और हॉस्टल की ओर भागी। फूलों और लताओं ने झूल कर रास्ते को फिर छुपा दिया।

कुछ दिनो तक चाँदनी को सागर के किनारे जाने का मौका नहीं मिला। परीक्षा के कारण वह पढ़ाई में व्यस्त हो गई। चमकीली ने ठीक कहा था- “तुम्हें जीवन की सारी सुविधाएँ मिली हैं। बस मन लगा कर पढ़ना है।” पर चमकीली की आगे की कहानी जानने के लिए वह बेचैन थी। उसकी परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थीं।

शनिवार की सुबह उसने जल्दी से नाश्ता किया और चमकीली के पास जा पहूँची। आज वह चमकीली के लिए रोटी लाना नहीं भूली थी। चमकीली उसे देखते ही खुश हो गई। चमकीली ने पूछा – “पढ़ाई मे व्यस्त थी क्या? तुम खूब मन लगा कर पढ़ो और क्लास में अव्वल आओ।” चाँदनी ने कहा-” तुम्हारी बात मान कर मैंने मन लगा कर पढाई की है। अब तुम मेरी बात मान कर अपनी कहानी सुनाओ और तुम्हें एक बात बतलाऊँ? आज शाम में पप्पा मुझे लेने आ रहे हैं। मैं छुट्टियों में खूब मस्ती करूंगी। पर छुट्टियां खत्म होते वापस जरूर आऊँगी। तुम्हारी वजह से मुझे अपना स्कूल और हॉस्टल अच्छा लगने लगा है। घर पर तुम्हें बहुत याद करूंगी। अच्छा बताओ, तुम कब घर जाओगी चमकीली? मेरे वापस लौटने तक तुम भी जरूर आ जाना।’ चमकीली कुछ याद करते हुए बोली-” हाँ, मुझे भी कुछ समय में अपने घर जाना है।”

तुम्हारा घर कितनी दूर है? तुम्हें लेने कौन आएगा? तुम कब यहाँ वापस लौटोगी? तुम अपनी कहानी कब पूरी करोगी? चाँदनी ने रुआंसी आवाज़ में ढेर सारे प्रश्न पूछ लिए। दरअसल सैल्मन के घर जाने की बात सुन कर उसे रोना आने लगा।

” अरे, रुको तो। तुम ने इतने सारे प्रश्न एक साथ पूछ लिए है। मैं तुम्हें सारी बातें बताती हूँ। पहले मैं अपनी कहानी पूरी करती हूँ। तुम्हें सब प्रश्नों का उत्तर भी मिल जाएगा। पर पहले तुम्हें मुस्कुराना होगा”- चमकीली ने कहा। चाँदनी जल्दी से आँसू पोंछ कर मुस्कुराने लगी। सैल्मन अपनी कहानी आगे बताने लगी। चमकीली ने कहा- “जैसे तुम अपने घर जाना चाहती हो वैसे ही मुझे भी एक दिन अपने घर जाना है।

सागर में कुछ साल बिताने के बाद हमारा झुंड वापस अपने जन्म स्थान पर लौटता है। जो यहाँ से सैकड़ो किलोमीटर दूर है। हमें कोई लेने नहीं आता है, चाँदनी। हमें अपने आप ही लौटना पड़ता है।” चाँदनी ने पूछा-” तुम्हें अपना पता तो याद है न? सैल्मन पूंछ से पानी उड़ाते हुए हँस पड़ी और बोली-“हमारा कोई पता नहीं होता हैं। हमें अपने याद और समझदारी के सहारे वापस लौटना होता है।”

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सागर से हम झरने के मुहाने पर पहुचते हैं। फिर हमें झरने के पानी में बहाव के उल्टे दिशा में तैरना पड़ता है। कहीं-कहीं तो ऊँची छलांग लगा कर ऊपर जाना पड़ता है। यह बहुत थका देने वाली यात्रा होती है। रास्ते में जंगली भालू और पंछी हमें शिकार बनाने के फिराक में रहते हैं। हमें इन सब से बचते-बचते अपने घर पहुँचना पड़ता है। यहाँ पहुँच कर हम अंडे देते है।

जिससे हमारी नई पीढ़ी शुरू होती है। जहाँ हमारी जिंदगी शुरू होती है अक्सर वहीं हमारी जिंदगी खत्म होती है।” यही हमारी जीवन कथा है। ईश्वर ने हमें ऐसा ही बनाया है।सैल्मन अपनी कहानी सुना कर उदास हो गई। चाँदनी का मन द्रवित हो उठा। पर मन ही मन वह चमकीली को दाद देने लगी। वह बोल पड़ी- “अरे, तुम तो सुपर-फिश हो।’ सोलोमन ने पूछा-“सुपर-फिश मतलब?” चाँदनी ने कहा-” अरे, जैसे सुपर-मैन होता है, वैसे ही तुम सुपर-फिश हो। मतलब बहुत बहादुर सैल्मन।” दोनों सहेलियां खिलखिला कर हँसने लगी, लेकिन चाँदनी के चेहरे पर उदासी छा गई। उसने पूछा-” तब क्या तुम वापस नहीं लौटोगी? ऐसा मत करना। तुम जरूर वापस लौट आना। तुम मेरी दोस्त हो न? मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगी?” सैल्मन ने जवाब दिया- अच्छा, तुम चिंता मत करो। हमारी दोस्ती बनी रहेगी।

छुट्टियों के बाद चाँदनी स्कूल लौटी। वह बहुत खुश थी। वह अपनी कक्षा मे प्रथम आई थी। वह चट्टानों पर भागती हुई सागर के किनारे पहुँची। उसका मन उत्साह और भय के मिले-जुले एहसास से भरा था। उसे मालूम नहीं था कि अब उसे चमकीली से भेंट होगी या नहीं। वह बहुत देर चट्टान पर बैठे-बैठे सैल्मन का इंतज़ार करती रही। चमकीली नहीं आई। वह हॉस्टल लौट गई। जब काफी दिन बीत गए और चमकीली नहीं नज़र आई तब चाँदनी को विश्वास हो गया कि चमकीली अपने झरने मेँ लौटते समय अपनी जान गँवा बैठी है।या फिर वह भी अपने माता-पिता की तरह अंडे दे कर अपने झरने मेँ मौत की नींद सो गई।

आज काफ़ी लंबे अरसे बाद, फिर भारी मन से वह सागर किनारे से वापस लौटने वाली थी। तभी नीचे पानी में हलचल दिखी। वह गौर से देखने लगी। नीचे कुछ झिलमिलाता सा लगा पर फिर कुछ नज़र नहीं आया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और अनजाने मेँ ही वह चमकीली को आवाज़ देने लगी।

अचानक आवाज़ आई- तुम मेरी माँ को जानती हो क्या? उसका नाम चमकीली था। मैं यहाँ रोज़ तुम्हें बैठे देखती हूँ। पर डर से ऊपर नहीं आती थी। तुम मुझसे दोस्ती करोगी क्या? एक छोटी रुपहली मछ्ली पानी की सतह पर तैर रही थी। चाँदनी अविश्वास के साथ छोटी सी चमकीली को देख रही थी। चमकीली ने जाने से पहले ठीक कहा था-” तुम चिंता मत करो। हमारी दोस्ती बनी रहेगी।” उसके आँखों से आँसू रुक ही नहीं रहें थे। कभी सामने डूबते लाल सूरज को देखती कभी प्यारी सी नन्ही चमकीली को। दरअसल वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी। साथ ही प्रकृति के अनोखे खेल से हैरान थी।

तभी किसी ने उसके पीठ पर हाथ रखा। उसके हॉस्टल की अध्यापिका खड़ी थीं। उन्होने चाँदनी से पूछा- बेटा, तुम अकेली यहाँ क्या कर रही हो?तुम्हें इस तरह अकेले यहाँ नहीं आना चाहिए। क्या तुम्हें सागर और उसके जीवों को देखना पसंद है? प्रकृति और पशु-पक्षियों से हमें अनेक सीख मिलती हैं । चलो, अब मैं तुम सब बच्चों को शाम में सागर किनारे लाया करूंगी। चाँदनी चुपचाप छोटी चमकीली को निहार रही थी और सोच रही थी – क्या कोई मेरी और चमकीली के दोस्ती की कहानी पर विश्वाश करेगा?

(यह कहानी अभिभावकों को बाल मनोविज्ञान की जानकारी देती है। बच्चों को प्रकृति और जानवरों का साहचर्य आनंद, खुशी और अभिव्यक्ति का अवसर देता है। पशुपक्षी सिर्फ मनोरंजन का स्रोत है ,बल्कि वे बच्चों के कोमल मानसिकता को प्रभावित करते हैं। वे बच्चों और उनके अंतर्मुखी मन की बातों को अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करतें हैं। यह कहानी इसी बात को दर्शाती है। साथ ही इस कहानी के माध्यम से बच्चों को सैल्मन मछली के जीवनचक्र की जानकारी मिलती है।)