होते हैं कुछ लोग
ख़ुशगवार-सुकुमार दिखते पीपल से।
दीवारों-छतों-घरों पर बिन बताए,
बिना अनुमति ऊग आये पीपल से।
नाज़ुक पत्तियों और हरीतिमा भरा पीपल।
समय दिखाता है,
इनके असली रंग।
गहरी जड़ें कैसे आहिस्ते-आहिस्ते गलातीं है,
उन्ही दरों-दीवारों को टूटने-बिखरने तक,
जहाँ मिला आश्रय उन्हें।