फ़साने लिखें, जवाब ना आए।
अनदेखा-अनसुना किया जाए।
ऐसी बेरुख़ी की क्या शिकायतें?
सुकून है तब, संभल कर निकल जायें
जब क़रीब से कमजोर- बिखरती इमारतों के।
तब समझो ज़िंदगी जीना आ गया।
TopicByYourQuote
फ़साने लिखें, जवाब ना आए।
अनदेखा-अनसुना किया जाए।
ऐसी बेरुख़ी की क्या शिकायतें?
सुकून है तब, संभल कर निकल जायें
जब क़रीब से कमजोर- बिखरती इमारतों के।
तब समझो ज़िंदगी जीना आ गया।
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