
पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।

पीले पड़ कर झड़ेंगे
या कभी तेज़ हवा का
कोई झोंका ले जाएगा,
मालूम नहीं।
पत्ते सी है चार दिनों
की ज़िंदगी।
पतझड़ आना हीं है।
फिर भी क्या
तिलस्म है ज़िंदगी ।
सब जान कर भी
नीड़ सजाना हीं है।
सब कुछ जानिए
काफी नहीं हैं
अलंकरण भी
पत्थर में
शास्त्रों में
खजाने के बारे में
वो आत्मा
पूरी तरह से
दिन के उजाले का
लिफ्ट करने के लिए
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🙏🙏
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ज़िदगी का तिलिस्म ऐसा ही हैं, सभी जानते हैं कि हम सब को यह संसार छोड़ कर जाना है, फिर भी अपने को भुलावे में रख कर यही सोच कर ऐसे जीते हैं कि हम यहाँ हमेशा ही रहेगे।
बेहतरीन प्रस्तुति रेखा दीदी 👌🏼👌🏼😊
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वैसे तो हम सभी को सारी बातें याद रहती हैं। पर जीवन की इस कटु सच्चाई की हम सब जान कर भी भूल जाना चाहतें हैं।
धन्यवाद अनिता तुम्हारे सुंदर विचारों के लिए।
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Wah!!
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Thanks
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Thanks 😊
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