
पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?

पसंद
हम चाहें ना चाहें,
सब हमें चाहें।
हम कबूलें या ना क़बूलें लोगों को,
पर हमें सब क़बूल करें।
यह ज़िद्द क्यों, सब पसंद करें तुम्हें?
क्या कायनात मे सभी पसंद हैं तुम्हें?

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
(जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों में हौसला दिलानेवाला श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक)
भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को गीता के ज्ञान रूप में अपनी विशेष कृपा प्रदान की है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है.
Gita Mahotsav is an event centred around the Bhagavad Gita, celebrated on the Shukla Ekadashi, the 11th day of Margashirsha the waxing moon of the (Agrahayan) month of the Hindu calendar. It is believed the Bhagavad Gita was revealed to Arjunaby Krishna in the battlefield of Kurukshetra.

चाँद ने सूरज को आवाज़ दे कर कहा –
ज़िंदगी की राहों में कुछ पाना,
कुछ खोना लगा रहता है।
कम ज़्यादा होना लगा रहता है।
भला या बुरा किया किसी के साथ,
उसका जवाब मिलता रहता है।
आवाज़ की गूंजें लौट कर है आती रहतीं हैं।
सागर और ब्रह्मांड का यह है फ़लसफ़ा।

चराग़-ए-रहगुज़र रौशन करता है।
मुसाफिर की अँधेरी राहों को।
जब दिल में चराग़ जल उठते हैं,
रौशन करते हैं रूह की राहें को।
अर्थ –
चराग़-ए-रहगुज़र – lamp on the way

कुछ लोग बिन आईना जीते हैं ज़िंदगी।
वे भूल जातें है, ख़ुद एक आईना है ज़िंदगी।
और जब अचानक उन्हें हीं उनका चेहरा
दिखाती है आईना-ई-ज़िंदगी।
तब नहीं पाते अपने आप को पहचान,
या अपना भूला चेहरा ना चाहतें हैं पहचानना?
धूमिल, दाग़दार, मलिन अक्स।
आईना नहीं बोलता झूठ, जानते हैं सभी शख़्स

सारे सच लोग झूठ बताते चले गये।
सारी ज़िंदगी छले जाते रहे।
कई धोखे भरे रिश्ते निभाते चले गये।
शायद हुआ ऊपर वाले के सब्र का अंत।
हाथ पकड़ ले चला राह-ए-बसंत।
एक नई दुनिया, नई दिशा में।
बोला, पहचान बना जी अपने में।
तलाश अपने आप को, अपने आप में।
ग़र चाहिए ख़ुशियाँ और सुकून का साया।
जाग, छोड़ जग की मोह-माया।
मैं हूँ हमेशा साथ तेरे, कर बंदगी।
ख़ुशगवारी से जी भर, जी ले ज़िंदगी।

क्यों हर रास्ते चलते जातें हैं,
ज़िन्दगी की बहाव की तरह?
क्यों रास्तों के पेच-ओ-ख़म,
राहों की सख़्तियाँ ख़त्म होतीं नहीं है,
ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव की तरह?
मालूम नहीं हर रहगुज़र मंज़िल का पता दे कि ना दे,
पर राहों पर चलते जाना हीं सफ़र-ए-ज़िंदगी है।
हम सब हैं मुसाफ़िर, मंज़िल की तलाश में।

आईने ने पूछा –
क्यों लिए फिरती हो मुझे साथ?
मैंने कहा –
यक़ीं है, कड़वे लोगों को बेहतरीन
ज़वाब दे ऊपरवाला थामे रहेगा मेरा हाथ।
पर भूल से भी अहंकार में ना डूब जाऊँ,
आईने में खुद को देख नज़रें झुकाऊँ,
इस कोशिश में कि मैं ख़ुद आईना बन जाऊँ।
अपने से अपनी होड़ लगाऊँ।
Interesting fact –
Stay true to yourself. As what brings
you a sense of happiness, purpose
and meaning in life is important.

सागर के इश्क़ में नदियाँ छोड़ आईं
पहाड़ों, हिम और हिमनदों को।
बहती नदियों को बस मालूम है इतना,
उनकी मंज़िल है,
साग़र के आग़ोश में।
क्या पता है इन्हें इनकी मंज़िल ….
…..सागर खारा मिलेगा?

मौन रह कर
माफ़ कर देना,
मौन रह कर
जीवन पथ पर बढ़ जाना
सबके बस की बात नहीं।
यह होता है तब
ऊपरवाले पर भरोसा हो जब।
अलफ़ाज़ बेमानी हो जाते हैं तब।
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