ज़िंदगी के रंग -185

वर्षा सी बरसती,

 अर्ध खुली भीगी आँखों के

 गीले पलकों के चिलमन से

 कभी कभी दुनिया, इंद्रधनुष सी

    सतरंगी दिखती है.

    आँखों के खुलते ही सारे

     इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते हैं.

        ख़्वाबों का पीछा करती

       ज़िंदगी कुछ ऐसी हीं होतीं.

8 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -185

  1. मैम आपके ये पोस्ट कुछ उलटे पुलटे से है। क्या आपने ऐसा किया या कोई मिस्टेक है। आप एक बार देखें।

    Liked by 2 people

    1. इस पोस्ट के linesको मैं नेalag ढंग से लिखा था. jo mobile par उल्टा पुल्टा दिख रहा है . dhyaan दिलाने ke लिए आभार है.इससे मैं ठीक कर देती हूँ.

      Liked by 2 people

Leave a comment