And so it is,
that both the devil
and the angelic spirits
present us with
objects of desire
to awaken our
power of choice.
Rumi ❤️
Day: August 21, 2019
ज़िंदगी के रंग -185
वर्षा सी बरसती,
अर्ध खुली भीगी आँखों के
गीले पलको के चिलमन से
कभी कभी दुनियाइंद्रधनुष सी,
सतरंगी दिखती है.
आँखों के खुलते ही सारे
इंद्रधनुष के रंग बिखर जाते हैं.
ख़्वाबों का पीछा करती
ज़िंदगी कुछ ऐसी हीं होतीं.
ज़िंदगी के रंग- 89
मेरी एक पुरानी कविता –
ना जाने क्यों, कभी-कभी पुरानी यादें दरवाजे की दहलीज से आवाज़ देने लगती हैं।
AUGUST 16, 2018 REKHA SAHAY
एक टुकड़ा ज़िंदगी का
बानगी है पूरे जीवन के
जद्दोजहद का.
उठते – गिरते, हँसते-रोते
कभी पूरी , कभी स्लाइसों
में कटी ज़िंदगी
जीते हुए कट हीं जाती है .
इसलिए मन की बातें
और अरमानों के
पल भी जी लेने चाहिये.
ताकि अफ़सोस ना रहे
अधूरे हसरतों ….तमन्नाओं …. की.
ज़िंदगी के रंग -184
कभी नहीं चाहा तुम्हें यादों में याद करें.
पर क्या यादों …चाहतों…पर है ज़ोर किसी का?
blogger R. K. Karnani की पंक्तियों से प्रेरित रचना .
डूबती नब्ज़
आँखों में पानी का दरिया लिए,
डूबती नब्ज़ को देखा है कभी ?
सुनती नहीं किसी की .
बस डूबती रहती है बिन पानी के ?
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