अंधकार में डूबते
ढलते सूरज से कहा
इतनी जल्दी क्या है जाने की ?
उसने मायूसी से जवाब दिया –
आज उम्र….ज़िंदगी जी ली ,
ढलने का समय आ गया है.
ठंडी, बहती बयार ने कहा –
उम्र तो मात्र गिनती है और
ढलना भी शाश्वत सत्य है.
इनायत से ….नफ़ासत…..से
उम्र औ ज़िंदगी जी लो .
ढलने का ग़म क्या करना ?
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