गुस्ताखियाँ, बे-अदबी छोड़,
अदब से पेश आओ
मिट्टी की इस काया से.
कौन जाने क्षणभंगुर
ज़िंदगी का हबाब….बुलबुला…
कब हवा के झोंके में खो जाए .
गुस्ताखियाँ, बे-अदबी छोड़,
अदब से पेश आओ
मिट्टी की इस काया से.
कौन जाने क्षणभंगुर
ज़िंदगी का हबाब….बुलबुला…
कब हवा के झोंके में खो जाए .
Happy is the moment
we sit together,
with two forms,
with two faces,
yet one soul.
You and I.
Rumi ❤️