वही छलकता हैं जो हमारे अंदर है !!

जब कभी थोड़ा सा भी ठेस लगता है,

हर शख़्स के ज़बान और व्यवहार से ,

वही झलकता और छलकता है,

जो उसके अंदर भरा होता है.

धक्का लगने से

दूध के पात्र से दूध,

जाम से शराब और

गंगाजली के गोमुख से

गंगाजल हीं छलकेगा.

हमारे अंदर क्या है?

अपने अंदर क्या रखना है?

यह तो अपना-अपना ख़्याल है.

क्योंकि हर चोट के साथ वही

छलक कर सामने आएगा .