Day: July 12, 2019
ज़िंदगी के रंग- 173
अदबी महफ़िलें, रस्मों -ओ -रवायत
से निभाई जातीं हैं.
हँसी ….मुस्कान …अपनापन
सब कुछ नपा – तौला सा होता है.
जब हमें क़ुदरत ने नवाज़ा है आज़ाद तबियत से.
फिर मुस्कान पे राशन,
गुफ़्तगू में तकल्लुफ़ क्यों ?
बेज़ुबाँ बन, दिखावटी महफ़िलों से अच्छा है,
तन्हाइयों की अपनी महफ़िल
में समय गुज़ारे अपने साथ.
शब्दार्थ–
अदबी- शिष्टाचार .
महफ़िलें- पार्टी.
रस्मों -ओ -रवायत— दस्तूर.
गुफ़्तगू – बातचीत.
तकल्लुफ़ – बनावट, औपचारिकता.
बेज़ुबाँ– जिसमें बोलने की शक्ति न हो.
Peace
Forwarded as received.