ज़िन्दगी के रंग -177

हथेलियों पर रखे थे

चंद नाज़ुक यादों को

सहेज कर.

हवा के झोंके के साथ

रेत सी कहीं सरक गई

ज्योंहीं कोशिश किया

मुट्ठी बंद करने की .

Logo courtesy- Kumar Param, blogger.

12 thoughts on “ज़िन्दगी के रंग -177

  1. कमाल का पोस्ट लिखीं हैं मैम आपने। इसे मैं अपने whatsapp और facebook पर पोस्ट करना चाहता है।
    इन पंक्तियों में बहुत बातें छुपी है।👍

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