ख़ुद को समेटते समेटते
ना जाने कब दर्दे जिगर
खुल कर बिखर गए.
जितनी बार बांधा
उतनी बार ज़ख़्मों की
गाँठे खुल खुल गई.
शायद चोट को
खुला छोड़ देना हीं मुनासिब है.
खुली बयार और वक़्त
हीं इन्हें समेट ले ….भर दे .
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ख़ुद को समेटते समेटते
ना जाने कब दर्दे जिगर
खुल कर बिखर गए.
जितनी बार बांधा
उतनी बार ज़ख़्मों की
गाँठे खुल खुल गई.
शायद चोट को
खुला छोड़ देना हीं मुनासिब है.
खुली बयार और वक़्त
हीं इन्हें समेट ले ….भर दे .
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Heart touching
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Thank you 😊
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Very painful but powerful lines👍
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Thank you Shanky.
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जख्मों को रफू करके दिल शाद करें फिर से, ख्वाबों की नई दुनिया आबाद करें फिर से… जो जिंदा है तो दर्द भी हैं…पर जो भी हैं खूबसूरत हैं!
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सही है – दर्द भी है, पर ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है. पर रफ़ू और गाँठों के दाग़ रह जातें हैं , कसक देने के लिए.
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बिल्कुल!
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शुक्रिया.
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वाह👌👌 गांठे हमें जोड़ती है
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शुक्रिया .
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शायद यही ठीक भी है रेखा जी । कई गाँठें वक़्त ही खोल सकता है और कई ज़ख़्म वक़्त भी नहीं भर सकता । और यह भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें, कुछ दर्द तो सीने से लगाने के लिए हैं । कई बार ग़म भी अच्छा लगता है, आँसू बहाने में भी मज़ा आता है । आपने वो नग़मा तो सुना ही होगा – ‘मुझे ग़म भी उनका अज़ीज़ है कि उन्हीं की दी हुई चीज़ है; यही ग़म है अब मेरी ज़िंदगी, इसे कैसे ख़ुद से जुदा करूं’ ।
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आपकी बातें सही और नग़मा भी सही है.
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* कुछ गाँठे खुलतीं नहीं है और ज़ख़्म जाते नहीं, क्योंकि कुछ बातें ज़िंदगी के साथ जुड़ जातीं हैं. आभार जितेंद्र जी , यह नग़मा बताने के लिए.
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Tere Jigar mein rafu kaam bohot nikla modern ghalib….lol kidding….
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ज़िंदगी जितनी बार चोट दे कर सबक़ देतीं हैं, उतनी हीं बार मन का रफ़ू करना /सबक़ सीखना पड़ता है.
यही हमारे महान , असली और modern ग़ालिब का ख़्याल है .😊
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It’s spirituality, I guess. Not romantic
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Haha how come you can ignore ishq ..is real essence of spirituality my modern ghalib…
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Yes, but don’t mix spiritual love (Mira / Radha Krishan) and simple attractions.
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Matlab? What do you mean?
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Sorry Neeraj . I am not interested in all these things.
I don’t know why you are confused again.
I’ll not respond to any silly comment of yours. so please be reasonable.
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