जब हमने प्राकृतिक से जी भर कर छेड़छाड़ की है. अब प्रकृतिक की बारी है . वैसे भी सभी को अपनी नाराज़गी दिखाने का हक़ है. इसलिए अब मौसम पैंतरे बदल रहा है. हम सबों को झेलना तो पड़ेगा हीं.
जब हमने प्राकृतिक से जी भर कर छेड़छाड़ की है. अब प्रकृतिक की बारी है . वैसे भी सभी को अपनी नाराज़गी दिखाने का हक़ है. इसलिए अब मौसम पैंतरे बदल रहा है. हम सबों को झेलना तो पड़ेगा हीं.
बरसने को तो वो बादल कब से तैयार है
बस कुछ कटे पेड़ों कि बद-दुआ जो है
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sahi baat .
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सही कहा आपने… नाराजगी जाहिर करने का हक सबको है, अब जैसा बोएंगे वैसा पाएंगे ।
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हाँ , प्रकृति से हर दिन छेड़खानी हो रही है. नतीजा तो सामने आएगा हीं.
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