वो बचपन, वो बेपरवाह एहसास,
वो मासूमियत और भोलापन,
डूबा सच्चाई की चाशनी में।
तितलियाँ हमजोली लगती,
भँवरें ग़ज़लें सुनाते।
वो पारियों की सच्ची लगती कहानियाँ,
वो बेफ़िक्री की नींद।
ख़ुश थे कल वे पानी में
काग़ज़ की कश्तियाँ तैरा कर।
आज पानी भरे सात सागरों के पार
जा आ कर भी डूबे है ज़िंदगी कि उलझनों में।
एक वो ज़माना था, इक ये ज़माना है।
Happy World Children’s Day – 20 November
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