Love is a travel…..
All travelers,
whether they want
or not are changed.
No one can travel into love
and remain the same.
~~ Shams Tabrizi
Love is a travel…..
All travelers,
whether they want
or not are changed.
No one can travel into love
and remain the same.
~~ Shams Tabrizi
Some beautiful paths can’t be discovered without getting lost.
कभी-कभी राहों मे,
खो जाना भी अच्छा है,
कुछ सुंदर नये रास्तों को पाने के लिए ।
खोये बिना कुछ पाया नहीं जा सकता।
अपने आप को भी भूल जाना
कभी-कभी अच्छा है
बहुत कुछ नया पाने के लिए।
Image from internet.
Research reveals that global warming is compelling birds into early migration. Migrating birds are arriving at their breeding grounds earlier as global temperatures rise.

मौसम के साथ उङते रंग- बिरंगे परिंदे,
कुदरत के जादुई रंगों के साथ,
जहाँ का मौसम माकूल – माफिक हो
वहीं चल देते हैं।
हमारी तरह बंधनों से बंधे नहीं हैं।
ये बंधनों से ऊपर, घुमक्कड़ बंजारों से।
थके,-हारे, हजारों मीलों से उङ कर आते हैं।
हम आशियाना अौर समाज के बंधन से बंधे लोग
इन की प्राकृतिक जीवन को समझे बिना।
नैसर्गिक सृष्टि के नियम से छेङ-छाङ कर,
इन्हें तकलीफ पहुँचाते हैं।
शब्दार्थ- Word meaning
घुमक्कड़, बंजारा – gypsy
माकूल, माफिक – suitable
कुदरत,सृष्टि – nature,
सृष्टि – Creation
नैसर्गिक – Natural
प्रवासी – Migratory
Image from internet.
Images courtesy Chandni Sahay.


images from internet.

क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः |

ये कक्ष और मंदिर बड़े-बड़े शिला खंडों से निर्मित है तथा मोटे-मोटे, ऊँचे स्तंभों पर टिकें हैं। मंदिर की दीवारों पर अनेकों आकृतियाँ निर्मित हैं। मंदिर के अंदर की दीवारें वक्त के थपेड़ों और अगरबत्तियों के धुएँ से काली पड़ चुकी हैं। तीन कक्षों से गुजर कर गर्भ गृह का मार्ग है। मंदिर का गर्भ -गृह जमीन की सतह से नीचे है। पत्थर की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक छोटी प्रकृतिक गुफा के रूप में मंदिर का गर्भ-गृह है। यहाँ की दीवारें और ऊंची छतें अंधेरे में डूबी कालिमायुक्त है।




कोलकाता के प्रवास के दौरान एक ऐसे होटल में रुकने का अवसर मिला जो हुगली नदी पर है। यह होटल दावा करता है, कि यह भारत भर में नदी पर बना अकेला होटल है। यह वास्तव में अनोखा होटल है। इसमें रहने का अपना मज़ा है। सबसे ख़ास बात है हुगली के पल-पल बदलते रंग को इतने निकट से देखने का अवसर मिलता है। यह होटल हुगली नदी के बीच जहाज के रूप में बना है। इसलिए दिन और रात हर समय नदी को करीब से देखा जा सकता है।
सुबह की लालिमा, जाल लगाते मछुआरे, दिन भर चलती छोटी-बड़ी नावों को देखने का आनंद लाजवाब है। कभी-कभी साधारण नावों और जहाजों के बीच चमचमाता आधुनिक स्टीमार तेज़ गति से इन्हे पीछे छोड़ता तेज़ी से गुजर जाता है। नदी में थोड़ी-थोड़ी दूर पर जेट्टी या घाट बने हैं। जहां से यात्री जहाज चलते रहते हैं। कोलकाता में नाव और जल जहाज यातायात के महत्वपूर्ण साधन है।जो सस्ती और सुविधाजनक है।
इस होटल से नया और पुराना दोनों हावड़ा पुल नज़र आता है। दूर, नदी के दूसरे किनारे पर हावड़ा रेलवे-स्टेशन नज़र आता है। नदी के दूसरे तट पर मंदिर और अनेकों जेट्टी/ घाट नज़र आते हैं। यहाँ रात का एक अलग मनमोहक नज़ारा होता है। बहुत से नाव, जहाज और बजरे सजे-धजे, रंगीन रौशनी से नहाए इधर-उधर पानी पर तैरते दिखते हैं। ये पर्यटकों से भरे होते हैं। एक जहाज तो जलपरी के आकार और सजावट वाला है।
इस चहल-पहल को देखने की चाहत में एक और दुर्लभ चीज़ नज़र आई। वह है हुगली/ गंगा डॉलफिन। मेरी छोटी पुत्री चाँदनी ने फोन पर मुझसे कहा था कि गंगा में डॉलफिनें हैं। पर मुझे वे नज़र नहीं आई थीं। इस होटल में रहने के दौरान मैंने अनेक बार डॉलफिनों को देखा। गंगा की डॉलफिनें शायद थोड़ी शर्मीली हैं। वे जल सतह पर कम समय के लिए आ कर तुरंत ही डुबकी लगा लेती हैं। अक्सर वे पानी की सतह पर तभी दिखती हैं जब पानी साफ-सुथरा हो। शायद गंदगी से उन्हें भी घुटन होती है।
इस होटल में रुक कर एक अजीब नज़ारा हुगली नदी में देखने को मिला। हुगली नदी बड़ी विशाल है। अक्सर इसकी सतह पर कुछ न कुछ कचरा तैरता नज़र आ जाता है। पर यह नदी चौड़े पाट में बड़ी शांति से कुड़े-कचरे के बोझ को लिए बहते रहती है। जल प्रवाह बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होती रहती है। पर अचानक मैंने देखा कि जल प्रवाह उल्टी दिशा में होने लगा। अर्थात गंगा (हुगली) उल्टी बहने लगी। गंगा उल्टी बहना मुहावरे में जरूर कहा जाता है, पर वास्तव में ऐसा देख कर हैरानी होने लगी। लोगों के बताया कि यहाँ ऐसा अक्सर होता है। साथ ही नदी का जल स्तर या पानी का उतरना चढ़ना होता रहता है। दरअसल समुद्र यहाँ से बिलकुल करीब है। अतः यह समुद्र के ज्वार-भाटा का असर है। पर यह दृश्य मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। इस उल्टी धार में सारे कुड़े कर्कट पानी के साथ वापस आने लगा। शायद समुद्र इन्हे लौटा रहा था। काश हम सब इस इशारे को समझ नदी और जल जीवों की मदद कर सकें।
हम सभी सड़क मार्ग से गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से डायमंड हार्बर होते हुए लगभग 98 किलोमीटर दूर काकदीप पहुँचे। यहाँ से घाट या जेट्टी तक जाने का 10 मिनट का पैदल मार्ग है। जो बैट्री चालित कार या खुले ठेले पर बैठ कर भी पहुँचा जा सकता है। यहाँ गंगा / हुगली नदी को पार करना पड़ता है। काकदीप से पानी के जहाज़ के द्वारा आधे घंटे की यात्रा के बाद हम कचूबेरी घाट पहुँचे। जहाज का टिकिट मात्र आठ रुपए हैं। जहाज़ पर 30 मिनट की यह यात्रा बड़ी सुहावनी है। जल पक्षियों के झुंडों को देखने और दाना डालने में यह समय कब निकाल जाता है, पता ही नहीं चलता है। ये पक्षी भी अभ्यस्त है। दाना फेकते झुंड के झुंड पक्षी हवा में ही दाना पकड़ने के लिये झपटते हैं। बड़ा मनमोहक दृश्य होता है। इन जहाजों का आवागमन ज्वार-भाटे पर निर्भर करता है। ज्वार-भाटे के कारण जल धारा की दिशा बदलती रहती है। जब जल प्रवाह सही दिशा में होता है तभी ये जहाज़ परिचालित होते है। अन्यथा ये सही समय का इंतज़ार करते हैं।
कचूबेरी घाट पहुँच कर बस, कार या जुगाड़ से आगे की यात्रा की जा सकती है। यहाँ से गंगासागर / सागरद्वीप लगभग 32 किलोमीटर दूर है। बस वाले 20 रुपये प्रति व्यक्ति लेते है और पूरी टॅक्सी का किराया 5 से 6 सौ रुपये हैं। मार्ग में यहाँ के गाँव नज़र आते हैं। ये मिट्टी की झोपड़ियों और तालाबों वाले ठेठ बंगाली गांव होते है। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत, नारियल के लंबे पेड़, बांस के झुरमुट और केले के पौधे लगे होते हैं। काफी जगहों पर पान की खेती भी नज़र आती है।
गंगासागर पहुँच कर कपिल मुनि का मंदिर नज़र आती है । सामने एक लंबी सड़क जल प्रवाह की ओर जाती है। जिसे पैदल या ठेले पर जाया जा सकता हैं। सड़क के दोनों ओर पूजन सामाग्री की दुकाने है। यहाँ पर भिक्षुक और धरमार्थियों की भीड़ दिखती है। साथ ही झुंड के झुंड कुत्ते दिखते है। दरअसल गंगासागर में स्नान और पूजन के बाद भिक्षुक को अन्न दान और कुत्तों को भोजन / बिस्कुट देने की प्रथा है।
गंगासागर पहुँचने पर दूर-दूर तक शांत जल दिखता है। यहाँ सागर का उद्दाम रूप या बड़ी-बड़ी लहरें नहीं दिखती है। शायद गंगा के जल के मिलन से यहाँ जल शांत और मटमैला दिखता है। पर दूर पानी का रंग हल्का नीला-हरा नीलमणि सा दिखता है। प्रकृतिक का सौंदर्य देख कर यात्रा सार्थक लगती है। लगता है, मानो गंगा के साथ-साथ हमने भी सागर तक की यात्रा कर ली हो।
हमलोगों ने जल में खड़े हो कर पूजा किया और प्रथा के अनुसार लौट कर मंदिर गए। मंदिर में मुख्य प्रतिमा माँ गंगा, कपिल मुनि तथा भागीरथी जी की है। ये प्रतिमाएँ चटकीले नारंगी / गेरुए रंग से रंगे हुए हैं। इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर का निर्माण 1973 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पहले के वास्तविक मंदिर समुद्र के जल सतह के बढ्ने से जल में समा गए है।
किवदंती-
1) ऐसा माना जाता है कि गंगासागर के इस स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था और मकर संक्रांति के दिन गंगा जी ने पृथ्वी पर अवतरित हो 60,000 सगर-पुत्रों कि आत्मा को मुक्ति प्रदान किया था।
इस पवित्र तीर्थयात्रा से हम सभी लौट कर पास में त्रिय योग आश्रम गाए। यह उड़ीसा के जगन्नाथपूरी मंदिर के तर्ज़ पर कृष्ण सुभद्रा और बलराम का मंदिर है। साथ ही शिवलिंग भी स्थापित है। यहाँ हमें शुद्ध और सात्विक भोजन मिला। जिससे बड़ी तृप्ति मिली। इसके बाद हम रात ९ बजे तक कोलकाता वापस लौट आए। इस तरह से हमने एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा पूरी की। जिससे बड़ी आत्म संतुष्टी मिली। कहा जाता है –
You must be logged in to post a comment.