Love is a travel

Love is a travel…..

All travelers,

whether they want

or not are changed.

No one can travel into love

and remain the same.

 

~~ Shams Tabrizi

अनजानी राहें – कविता Untraveled Routes -Poem

Some beautiful paths can’t be discovered without getting lost.

 

कभी-कभी  राहों मे,

खो जाना भी अच्छा है,

कुछ सुंदर नये रास्तों को पाने के लिए ।

खोये  बिना कुछ पाया नहीं  जा सकता।

अपने आप को भी भूल जाना

कभी-कभी अच्छा है

बहुत कुछ नया पाने के लिए।

Image from internet.

मौसम के साथ उङते प्रवासी परिंदे- कविता Migratory birds – Poem

Research reveals that global warming is compelling birds into early migration. Migrating birds are arriving at their breeding grounds earlier as global temperatures rise.

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मौसम के साथ उङते रंग- बिरंगे परिंदे,
कुदरत के जादुई रंगों के साथ,

जहाँ का मौसम माकूल – माफिक हो 

वहीं चल देते हैं। 

हमारी तरह बंधनों से बंधे नहीं हैं। 

ये बंधनों से ऊपर, घुमक्कड़  बंजारों से।

थके,-हारे, हजारों मीलों से उङ कर आते हैं।

हम आशियाना  अौर समाज के बंधन से बंधे लोग

इन की प्राकृतिक जीवन को समझे बिना।

नैसर्गिक सृष्टि के नियम से छेङ-छाङ कर,

इन्हें तकलीफ पहुँचाते हैं। 

शब्दार्थ- Word meaning

घुमक्कड़, बंजारा – gypsy

माकूल,  माफिक – suitable

कुदरत,सृष्टि – nature,

सृष्टि – Creation

नैसर्गिक – Natural

प्रवासी – Migratory

Image from internet.

Images courtesy  Chandni Sahay.

Desire to live – Poetry. मौत नहीं , जिंदगी की हसरत- कविता

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During monsoon , Mumbai-Pune express-way looks beautiful but becomes dangerous too.This poem is based on a road accident.

Why every one is in hurry?
It’s better “ be late than never”.
Isn’t it?

(मुंम्बई- पुणे एक्सप्रेस वे के एक सङक हादसे पर आधारित। वर्षा में यह मार्ग बहुत खुबसूरत लगता है )

र्पिली सङकें, खुबसूरत पहाङी झरने
रिमझिम वर्षा की फुहारें
बल खाती सङकों पर भागती गाङियाँ,

माना, कोई राह तक रहा होगा।
पर , इतनी जल्दी क्यों है सब को?
ना पहुँचने से तो ………
देर भली है।

मौत नहीं, जिंदगी देखने की हसरत है।

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images from internet.

कामख्या मंदिर – (यात्रा संस्मरण और पौराणिक कथायें )

मंदिर की खूबसूरत नक्कासी
मंदिर की खूबसूरत नक्कासी

                                                                  क्लीं क्लीं कामाख्या क्लीं क्लीं नमः |

दिनांक – 9.2.2015, मंगलवार। समय संध्या 4:15
आसाम का गौहाटी शहर विख्यात कामख्या मंदिर के लिए जाना जाता है। यह एक शक्ति पीठ है। यह मंदिर वर्तमान कामरूप जिला में स्थित है। माँ कामख्या आदिशक्ति और शक्तिशाली तांत्रिक देवी के रूप में जानी जाती हैं। इन्हे माँ काली और तारा का मिश्रित रूप माना जाता है। इनकी साधना को कौल या शक्ति मार्ग कहा जाता है। यहाँ साधू-संत, अघोरी विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं।

आसाम को प्राचीन समय में कामरूप देश या कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना जाता था। यह तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता थी कि कामरूप- कामाख्या के सिद्ध लोग मनमोहिनी मंत्र तथा वशीकरण मंत्र आदि जानते है। जिस के प्रभाव से किसी को भी मोहित या वशीभूत कर सकते थे।
वशीकरण मंत्र —

                      ॐ नमो कामाक्षी देवी आमुकी मे वंशम कुरुकुरु स्वाहा|

गौहाटी सड़क मार्ग, रेल और वायुयान से पहुँचा जा सकता है। गौहाटी के पश्चिम में निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत पर यह मंदिर स्थित है। यह समुद्र से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर है। गौहाटी शहर से मंदिर आठ किलोमीटर की दूरी पर पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक सड़क मार्ग है।

वास्तु शिल्प – ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण 8वीं सदी में हुआ था। तब से 17वीं सदी तक अनेकों बार पुनर्निर्माण होता रहा। मंदिर आज जिस रूप में मौजूद है। उसे 17वीं सदी में कुच बिहार के राजा नर नारायण ने पुनर्निमित करवाया था। मंदिर के वास्तु शिल्प को निलांचल प्रकार माना जाता है। मंदिर का निर्माण लंबाई में है। इसमें पूर्व से पश्चिम, चार कक्ष बने हैं। जिसमें एक गर्भगृह तथा तीन अन्य कक्ष हैं।

मंदिर की खूबसूरत नक्कासी
मंदिर की खूबसूरत नक्कासी

ये कक्ष और मंदिर बड़े-बड़े शिला खंडों से निर्मित है तथा मोटे-मोटे, ऊँचे स्तंभों पर टिकें हैं। मंदिर की दीवारों पर अनेकों आकृतियाँ निर्मित हैं। मंदिर के अंदर की दीवारें वक्त के थपेड़ों और अगरबत्तियों के धुएँ से काली पड़ चुकी हैं। तीन कक्षों से गुजर कर गर्भ गृह का मार्ग है। मंदिर का गर्भ -गृह जमीन की सतह से नीचे है। पत्थर की संकरी, टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों से नीचे उतर कर एक छोटी प्रकृतिक गुफा के रूप में मंदिर का गर्भ-गृह है। यहाँ की दीवारें और ऊंची छतें अंधेरे में डूबी कालिमायुक्त है।

इस मंदिर में देवी की प्रतिमा नहीं है। वरन पत्थर पर योनि आकृति है। यहाँ पर साथ में एक छोटा प्रकृतिक झरना है। यह प्रकृतिक जल श्रोत इस आकृति को गीली रखती है। माँ कामाख्या का पूजन स्थल पुष्प, सिंदूर और चुनरी से ढका होता है। उसके पास के स्थल/ पीठ को स्पर्श कर, वहाँ के जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

उसके बगल में माँ लक्ष्मी तथा माँ सरस्वती का स्थान/ पीठ है। यहाँ बड़े-बड़े दीपक जलते रहते हैं। गर्भगृह से ऊपर, बाहर आने पर सामने अन्नपूर्णा कक्ष है। जहाँ भोग प्रसाद बनता है। मंदिर के बाहर के पत्थरों पर विभिन्न सुंदर आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर का शिखर गोलाकार है। यह शिखर मधुमक्खी के गोल छत्ते के समान बना है।

मधुमक्खी के छट्टे  की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे  की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज
मधुमक्खी के छट्टे की आकृती का -कामाख्या मंदिर का गुंबज

बाहर निकाल कर अगरबत्ती व दीपक जलाने का स्थान बना है। थोड़ा आगे नारियाल तोड़ने का स्थान भी निर्दिष्ट है। पास के एक वृक्ष पर लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए धागा लपेटते हैं। मंदिर परिसार में अनेक बंदर है। जो हमेशा प्रसाद झपटने के लिए तैयार रहते है। अतः इनसे सावधान रहने की जरूरत है।

किंवदंतियां- मंदिर और देवी से संबंधित इस जगह की उत्पत्ति और महत्व पर कई किंवदंतियां हैं।

1) एक प्रसिद्ध कथा शक्तिपीठ से संबंधित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ सती की योनि गिरी थी। जो सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति का प्रतीक है। सती भगवान शिव की पहली पत्नी थी। सती के पिता ने विराट यज्ञ का आयोजन किया। पर यज्ञ के लिए शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया था। फलतः सती ने अपमानित महसूस किया और सती ने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ की आग में कूद कर अपनी जान दे दी।

इस से व्यथित, विछिप्त शिव ने यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठा लिया। सती के मृत शरीर को ले कर वे अशांत भटकने लगे। शिव सति के मृत देह को अपने कन्धे पर उठा ताण्डव नृत्य करने लगे। फ़लस्वरुप पृथ्वी विध्वंस होने लगी। समस्त देवता डर कर ब्रम्हा और विष्णु के पास गये और उनसे समस्त संसार के रक्षा की प्रार्थन की। विष्णु ने शिव को शांत करने के उद्देश्य से अपने चक्र से सती के मृत शरीर के खंडित कर दिया। फलतः सती के शरीर के अंग भारत उपमहाद्वीप के विभिन्न स्थानों पर गिर गए। शरीर के अंग जहां भी गिरे उन स्थानों पर विभिन्न रूपों में देवी की पूजा के केंद्र बन गए और शक्तिपीठ कहलाए। ऐसे 51 पवित्र शक्तिपीठ हैं। कामाख्या उनमें से एक है। संस्कृत में रचित कलिका पुराण के अनुसार कामाख्या देवी सारी मनोकामनाओं को पूरा करनेवाली और मुक्ति दात्री शिव वधू हैं।

                      कामाक्षे काम सम्मपने कमेश्वरी हरी प्रिया,
                    कामनाम देही मे नित्यम कामेश्वरी नामोस्तुते||

अंबुवासी पूजा- मान्यता है कि आषाढ़ / जून माह में देवी तीन दिन मासिक धर्म अवस्था में होती हैं। अतः मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन मंदिर सृष्टि, जीवन रचना और शक्ति के उपासना उत्सव के रूप में धूम धाम से खुलता है।मान्यता है कि इस समय कामाख्या के पास ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है।

2) एक अन्य किवदंती के अनुसार असुर नरका कमख्या देवी से विवाह करना चाहता था। देवी ने नरकासुर को एक अति कठिन कार्य सौपते हुए कहा कि अगर वह एक रात्रि में निलांचल पर्वत पर उनका एक मंदिर बना दे तथा वहाँ तक सीढियों का निर्माण कर दे। तब वे उससे विवाह के लिए तैयार हैं। दरअसल किसी देवी का दानव से विवाह असंभव था। अतः देवी ने यह कठिन शर्त रखी। पर नरकासुर द्वारा इस असंभव कार्य को लगभग पूरा करते देख देवी घबरा गई। तब देवी ने मुर्गे के असमय बाग से उसे भ्रमित कर दिया। नरकासुर ने समझा सवेरा हो गया है और उसने निर्माण कार्य अधूरा छोड़ दिया और शर्त हार गया। नरकासुर द्वारा बना अधूरा मार्ग आज मेखला पथ के रूप में जाना जाता है।

3)एक मान्यता यह भी है कि निलांचल/ कामगिरी/ कामाख्या पर्वत शिव और सती का प्रेमस्थल है। देवी कामाख्या सृष्टि, जीवन रचना और प्रेम की देवी है और यह उनका प्रेम / काम का स्थान रहा है। अतः इस कामाख्या कहा गया है।

4) एक कहानी के अनुसार कामदेव श्राप ग्रस्त हो कर अपनी समस्त काम शक्ति खो बैठे। तब वे इस स्थान पर देवी के गर्भ से पुनः उत्पन्न हो शापमुक्त हुए।

5)एक कथा संसार के रचनाकार और सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा से संबन्धित है। इस कहानी के अनुसार देवी कामाख्या ने एक बार ब्रह्मा से पूछा कि क्या वे शरीर के बिना जीवन रचना कर सकते हैं। ब्रह्मा ने एक ज्योति पुंज उत्पन्न किया। जिसके मध्य में योनि आकृति थी। यह ज्योति पुंज जहाँ स्थापित हुई उस स्थान को कामरूप-कामाख्या के नाम से जाना गया।

6) एक अन्य मान्यतानुसार माँ काली के दस अवतार अर्थात दस महाविद्या देवी इसी पर्वत पर स्थित है। इसलिए यह साधना और सिद्धी के लिए उपयुक्त शक्तिशाली स्थान माना जाता है। ये दस महाविद्या देवियाँ निम्नलिखित हैं– भुवनेश्वरी, बगलामुखी, छिन्मस्ता, त्रिपुरसुंदरी, तारा, घंटकर्ण, भैरवी, धूमवती, मातांगी व कमला।

                                       कामख्ये वरदे देवी नीलपर्वतवासिनी,
                                     त्वं देवी जगत्म मातर्योनिमुद्रे नामोस्तुते ||

मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती
मंदिर परिसर में हनुमान जी की मूर्ती

हुगली की उल्टी धार और डॉलफिन ( यात्रा अनुभव )

कोलकाता के प्रवास के दौरान एक ऐसे होटल में रुकने का अवसर मिला जो हुगली नदी पर है। यह होटल दावा करता है, कि यह भारत भर में नदी पर बना अकेला होटल है। यह वास्तव में अनोखा होटल है। इसमें रहने का अपना मज़ा है। सबसे ख़ास बात है हुगली के पल-पल बदलते रंग को इतने निकट से देखने का अवसर मिलता है। यह होटल हुगली नदी के बीच जहाज के रूप में बना है। इसलिए दिन और रात हर समय नदी को करीब से देखा जा सकता है।
सुबह की लालिमा, जाल लगाते मछुआरे, दिन भर चलती छोटी-बड़ी नावों को देखने का आनंद लाजवाब है। कभी-कभी साधारण नावों और जहाजों के बीच चमचमाता आधुनिक स्टीमार तेज़ गति से इन्हे पीछे छोड़ता तेज़ी से गुजर जाता है। नदी में थोड़ी-थोड़ी दूर पर जेट्टी या घाट बने हैं। जहां से यात्री जहाज चलते रहते हैं। कोलकाता में नाव और जल जहाज यातायात के महत्वपूर्ण साधन है।जो सस्ती और सुविधाजनक है।
इस होटल से नया और पुराना दोनों हावड़ा पुल नज़र आता है। दूर, नदी के दूसरे किनारे पर हावड़ा रेलवे-स्टेशन नज़र आता है। नदी के दूसरे तट पर मंदिर और अनेकों जेट्टी/ घाट नज़र आते हैं। यहाँ रात का एक अलग मनमोहक नज़ारा होता है। बहुत से नाव, जहाज और बजरे सजे-धजे, रंगीन रौशनी से नहाए इधर-उधर पानी पर तैरते दिखते हैं। ये पर्यटकों से भरे होते हैं। एक जहाज तो जलपरी के आकार और सजावट वाला है।
इस चहल-पहल को देखने की चाहत में एक और दुर्लभ चीज़ नज़र आई। वह है हुगली/ गंगा डॉलफिन। मेरी छोटी पुत्री चाँदनी ने फोन पर मुझसे कहा था कि गंगा में डॉलफिनें हैं। पर मुझे वे नज़र नहीं आई थीं। इस होटल में रहने के दौरान मैंने अनेक बार डॉलफिनों को देखा। गंगा की डॉलफिनें शायद थोड़ी शर्मीली हैं। वे जल सतह पर कम समय के लिए आ कर तुरंत ही डुबकी लगा लेती हैं। अक्सर वे पानी की सतह पर तभी दिखती हैं जब पानी साफ-सुथरा हो। शायद गंदगी से उन्हें भी घुटन होती है।
इस होटल में रुक कर एक अजीब नज़ारा हुगली नदी में देखने को मिला। हुगली नदी बड़ी विशाल है। अक्सर इसकी सतह पर कुछ न कुछ कचरा तैरता नज़र आ जाता है। पर यह नदी चौड़े पाट में बड़ी शांति से कुड़े-कचरे के बोझ को लिए बहते रहती है। जल प्रवाह बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होती रहती है। पर अचानक मैंने देखा कि जल प्रवाह उल्टी दिशा में होने लगा। अर्थात गंगा (हुगली) उल्टी बहने लगी। गंगा उल्टी बहना मुहावरे में जरूर कहा जाता है, पर वास्तव में ऐसा देख कर हैरानी होने लगी। लोगों के बताया कि यहाँ ऐसा अक्सर होता है। साथ ही नदी का जल स्तर या पानी का उतरना चढ़ना होता रहता है। दरअसल समुद्र यहाँ से बिलकुल करीब है। अतः यह समुद्र के ज्वार-भाटा का असर है। पर यह दृश्य मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। इस उल्टी धार में सारे कुड़े कर्कट पानी के साथ वापस आने लगा। शायद समुद्र इन्हे लौटा रहा था। काश हम सब इस इशारे को समझ नदी और जल जीवों की मदद कर सकें।

गंगासागर -एक यात्रा गंगा की सागर तक (यात्रा संस्मरण और पौराणिक कथाएँ )

15 फरवरी, रविवार, 2015,
कोलकाता से सुबह लगभग आठ बजे हम सब कार से गंगासागर जाने के लिए निकले। यह यात्रा हमारे मित्र श्री राहुल पवार और उनकी पत्नी श्रीमती सीमा पवार के सौजन्य से संभव हुआ। उन्होने यह कार्यक्रम पहले से बना रखा था। उनके आमंत्रण पर अधर और मैंने उनके साथ अपना कार्यक्रम बना लिया। यह दूरी रेल या बस द्वारा भी तय किया जा सकता है।
गंगासागर या सागरदीप गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। यह पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में पड़ता है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है। जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहाँ काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है। यहाँ की भाषा बंगला है। यहाँ पर रहने के लिए होटल मिलते है। साथ ही विभिन्न मतों के अनेकों आश्रम भी है। गंगासागर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जहां मकर संक्रांति के दिन 14 व 15 जनवरी को वृहत मेला लगता है। जिसमें लाखों लोग स्नान और पूजा करने आते हैं। ताकि उनके पाप धुल जाये और आशीर्वाद प्राप्त हो। यह एक पुण्यतीर्थ स्थान है।

हम सभी सड़क मार्ग से गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से डायमंड हार्बर होते हुए लगभग 98 किलोमीटर दूर काकदीप पहुँचे। यहाँ से घाट या जेट्टी तक जाने का 10 मिनट का पैदल मार्ग है। जो बैट्री चालित कार या खुले ठेले पर बैठ कर भी पहुँचा जा सकता है। यहाँ गंगा / हुगली नदी को पार करना पड़ता है। काकदीप से पानी के जहाज़ के द्वारा आधे घंटे की यात्रा के बाद हम कचूबेरी घाट पहुँचे। जहाज का टिकिट मात्र आठ रुपए हैं। जहाज़ पर 30 मिनट की यह यात्रा बड़ी सुहावनी है। जल पक्षियों के झुंडों को देखने और दाना डालने में यह समय कब निकाल जाता है, पता ही नहीं चलता है। ये पक्षी भी अभ्यस्त है। दाना फेकते झुंड के झुंड पक्षी हवा में ही दाना पकड़ने के लिये झपटते हैं। बड़ा मनमोहक दृश्य होता है। इन जहाजों का आवागमन ज्वार-भाटे पर निर्भर करता है। ज्वार-भाटे के कारण जल धारा की दिशा बदलती रहती है। जब जल प्रवाह सही दिशा में होता है तभी ये जहाज़ परिचालित होते है। अन्यथा ये सही समय का इंतज़ार करते हैं।
कचूबेरी घाट पहुँच कर बस, कार या जुगाड़ से आगे की यात्रा की जा सकती है। यहाँ से गंगासागर / सागरद्वीप लगभग 32 किलोमीटर दूर है। बस वाले 20 रुपये प्रति व्यक्ति लेते है और पूरी टॅक्सी का किराया 5 से 6 सौ रुपये हैं। मार्ग में यहाँ के गाँव नज़र आते हैं। ये मिट्टी की झोपड़ियों और तालाबों वाले ठेठ बंगाली गांव होते है। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत, नारियल के लंबे पेड़, बांस के झुरमुट और केले के पौधे लगे होते हैं। काफी जगहों पर पान की खेती भी नज़र आती है।
गंगासागर पहुँच कर कपिल मुनि का मंदिर नज़र आती है । सामने एक लंबी सड़क जल प्रवाह की ओर जाती है। जिसे पैदल या ठेले पर जाया जा सकता हैं। सड़क के दोनों ओर पूजन सामाग्री की दुकाने है। यहाँ पर भिक्षुक और धरमार्थियों की भीड़ दिखती है। साथ ही झुंड के झुंड कुत्ते दिखते है। दरअसल गंगासागर में स्नान और पूजन के बाद भिक्षुक को अन्न दान और कुत्तों को भोजन / बिस्कुट देने की प्रथा है।
गंगासागर पहुँचने पर दूर-दूर तक शांत जल दिखता है। यहाँ सागर का उद्दाम रूप या बड़ी-बड़ी लहरें नहीं दिखती है। शायद गंगा के जल के मिलन से यहाँ जल शांत और मटमैला दिखता है। पर दूर पानी का रंग हल्का नीला-हरा नीलमणि सा दिखता है। प्रकृतिक का सौंदर्य देख कर यात्रा सार्थक लगती है। लगता है, मानो गंगा के साथ-साथ हमने भी सागर तक की यात्रा कर ली हो।
हमलोगों ने जल में खड़े हो कर पूजा किया और प्रथा के अनुसार लौट कर मंदिर गए। मंदिर में मुख्य प्रतिमा माँ गंगा, कपिल मुनि तथा भागीरथी जी की है। ये प्रतिमाएँ चटकीले नारंगी / गेरुए रंग से रंगे हुए हैं। इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर का निर्माण 1973 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पहले के वास्तविक मंदिर समुद्र के जल सतह के बढ्ने से जल में समा गए है।
किवदंती-
1) ऐसा माना जाता है कि गंगासागर के इस स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था और मकर संक्रांति के दिन गंगा जी ने पृथ्वी पर अवतरित हो 60,000 सगर-पुत्रों कि आत्मा को मुक्ति प्रदान किया था।

 

ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। पर उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलतः उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे।
इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहाँ से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60,000 हज़ार पुत्रों को भेजा।
अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गए। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज़ हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज़ हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज़ से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागिरथ कपिल मुनि से माफी माँगने पहुँचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60,000 मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए इस पर स्नान का इतना महत्व है।
कहतें है कि भगवान इंद्रा ने यज्ञ अश्वों को जान-बुझ कर पाताल लोक में छुपा दिया था। बाद में कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। ऐसा उन्होने ने गंगा नदी को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए किया था। पहले गंगा स्वर्ग की नदी थीं। इंद्र जानते थे कि गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से अनेकों प्राणियों का भला होग।
*****

इस पवित्र तीर्थयात्रा से हम सभी लौट कर पास में त्रिय योग आश्रम गाए। यह उड़ीसा के जगन्नाथपूरी मंदिर के तर्ज़ पर कृष्ण सुभद्रा और बलराम का मंदिर है। साथ ही शिवलिंग भी स्थापित है। यहाँ हमें शुद्ध और सात्विक भोजन मिला। जिससे बड़ी तृप्ति मिली। इसके बाद हम रात ९ बजे तक कोलकाता वापस लौट आए। इस तरह से हमने एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा पूरी की। जिससे बड़ी आत्म संतुष्टी मिली। कहा जाता है –

                                        सब तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार।