राह के पत्थरों के ठोकरों ने सिखाया,
राह-ए-ज़िंदगी पर चलना।
बुतों का इबादत किया हर दम।
फिर क्यों फेंक दें इन पाषणों को? ,
सबक तो इन्हों ने भी दिये कई बार।
राह के पत्थरों के ठोकरों ने सिखाया,
राह-ए-ज़िंदगी पर चलना।
बुतों का इबादत किया हर दम।
फिर क्यों फेंक दें इन पाषणों को? ,
सबक तो इन्हों ने भी दिये कई बार।
संगेमरमर से पूछो तराशे जाने का दर्द कैसा होता है.
सुंदर द्वार, चौखटों और झरोखों में बदल गई,
साधारण लकड़ी से पूछो काटे जाने और नक़्क़ाशी का दर्द.
सुंदर-खरे गहनों से पूछो तपन क्या है?
चंदन से पूछो पत्थर पर रगड़े-घिसे जाने की कसक,
कुन्दन से पूछो आग की तपिश और जलन कैसी होती है.
हिना से पूछो पिसे जाने का दर्द.
कठोर पत्थरों से बनी, सांचे में ढली मंदिर की मूर्तियां से पूछो चोट क्या है.
तब समझ आएगा,
तप कर, चोट खा कर हीं निखरे हैं ये सब!
हर चोट जीना सिखाती है हमें.
अौर बार-बार ज़िंदगी परखती है हमें।
हम गलते-पीघलते नहीं ,
इसलिये
पत्थर या पाषण कहते हो,
पर खास बात हैं कि
हम पल-पल बदलते नहीं।
अौर तो अौर, हम से
लगी ठोकरें क्या
तुम्हें कम सबक सिखाती हैं??

images from internet.

images from internet.
You must be logged in to post a comment.