एक जंग अपनों से…

ये ज़िंदगी की धुआँ धुआँ हैं आहें।

दुरूह धोखे औ गर्द भरी राहें।

मसला तो यह है कि अपने हीं

मसलते हैं अपनों के दिलों को।

इतिहास भी देता है गवाहियाँ।

लाख कोशिशों के बाद कृष्ण भी हारे।

चाहे रिश्ते लाख निबाहें,

बदली हो जब अपनों की निगाहें।

एक जंग अपनों से…

रोक नहीं सके सारे।

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4 thoughts on “एक जंग अपनों से…

  1. उदासी
    दुष्ट
    अपने आप में
    गले लगाओ
    और इस हिंसा से नहीं
    दूसरों के खिलाफ
    मजूरी युद्ध

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