Month: April 2021
नासमझी की इंतहा !
कहाँ जा रहें हैं हम सब? क्या जितने डाक्टर और नर्सें कोरोंना की बलि चढ़ रहे हैं, उतने फिर से तैयार हो सके है? अपना जीवन दाव पर लगा जीवन देने वालों का यह हश्र? उनकी भूलों को खोज रहे सब, अपनी ग़लतियाँ भूल कर। क्यों कोरोना फैला इस कदर? खोज़ सको तो खोज लो।

हवा पानी
जब सुना था पानी बिकेगा बोतलों में।
सोंचा था कौन ख़रीदेगा ?
प्यास बुझाता दरिया का पानी,
सांसे महकाती दरख़्तों से गुजरती हवा,
आज बिक रहे हैं करोड़ों-अरबों में।
पानी आज शर्म से पानी पानी है।
खामोशी में डूबे बयार की अब शर्माने की बारी है।
बोतल में बंद हवा-पानी प्राण दायिनी बन गई है।
इनके गुलाम रूह अब आजादी पाएंगे कैसे?
शुभ रामनवमी !! कौन है राम ?
Rama Navami is a spring Hindu festival that celebrates the birthday of the Hindu God Lord Rama. He is particularly important to the Vaishnavism tradition of Hinduism, as the seventh avatar of God Vishnu.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, विष्णु अवतार मर्यादा पुरुर्षोत्तम भगवान राम का जन्म त्रेतायुग में चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अयोध्या में हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम हमारे भारतीय संस्कृति के मानस में से रचे-बसे हैं। कहते हैं राम का मात्र नाम ले लेने से राम, हनुमान और महादेव खुश हो जाते हैं। 15 वीं सदी के महान रहस्यवादी कवि कबीर ने भी कहा है –
“एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट घट में बैठा,
एक राम का सकल उजियारा,
एक राम जगत से न्यारा”।।
प्रभु श्रीराम के जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!

तांडव #Covid19
कहते हैं जीवन के अंतिम सत्य का एहसास श्मशान में होता है।
सचमुच यह सत्य महसूस हुआ बाँस घाट श्मशान के पास से गुजरते हुऐ,
अौर काशी में मणिकर्णिका घाट की अविराम जलतीं चितायें देख कर।
मोक्ष की आकांक्षा से खिंचे चले आते हैं लोग काशी।
अौर चिता की अग्नि धधकती रहती है इस महाश्मशान में।
एक चिता की अग्नि बुझे ना बुझे
धधक उठतीं हैं दूसरी चिता की लाल-पीली लपटें ।
आज रोज़ मिल रहीं हैं किसी ना किसी के निर्वाण की दुखद खबरें।
बन गईं हैं सारी श्मशानें, महाश्मशान, ….
…निरंतर जलती, हवा में अजीब गंध बिखेरती।
थके व्यथित परिजन अस्पताल, ईलाज़, ऑक्सीजन , दवा की लाइनों
के बाद पंक्ति बना रहें गुजरे स्वजनों के अंतशय्या के लिये मसानों में।
बिजली और गैस शव दाह गृह, क्रेमाटोरियम
की दीवारें, भट्टियां, लोहे गल रहे अनवरत जलती अपनी हीं आग में ।
क्या यह संहारक शिव का तांडव है?
या जल रहें हैं हम सब मानव,
मानवता अौर नैतिकता भूल अपनी हीं गलतियों के आग में?
प्रार्थना
आँखें बंद कर हाथ जुड़ गए,
ऊपर वाले के सामने।
प्रार्थना करते हुए मुँह से निकला –
विधाता ! तुम दाता हो।
तुमसे प्रार्थना है –
जिसने मुझे जो, जितना दिया।
तुम उसे वह दुगना दो!
यह सुन ना जाने क्यों कुछ लोग नाराज़ हो गए।
ज़िंदगी के रंग – 216

Eternal Shine !!
नज़रिया
उन्मुक्त हवा-बयार बंधन में नहीं बँध सकती है।
दरिया में जहाज़ चलना हो,
तो मस्तूल या पाल को साधना होता है।
ख़ुशियाँ चाहिए तब,
नज़र आती दुनिया को नहीं
अपने नज़रिए को साधना होता है।





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