बिखरी पड़ी है तेरी रौशनी हर ओर।
हम ढूँढते रहते हैं मंदिरों-मस्जिदों-गिरजों में।
आवाज़ें देते रहते हैं माजरों-समाधियों पर।
सुनते नहीं लौट कर आती सदायें….गूँज अपने अंदर की.
क्यों भूल जातें हैं-
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा है।
बस तेरी अमानतें हैं, जो लौटनीं है।
रूह से रूह तक प्रेम पहुँचाना है।

You must be logged in to post a comment.