ख़्वाब था, ख़्वाहिशें थीं या हक़ीक़त …. मालूम नहीं!
लगता था जैसे जागती अँधेरी रातों में,
नींद आते कोई आ बैठा पायताने, सहलाता तलवों को.
जहाँ उग आए थे फफोले, ज़िंदगी के दौड़ में भागते-दौड़ते .
दर्द देते, फूट गए थे कुछ छाले…. फफोले…… .
क्या जागती ज़िंदगी में भी कोई मलहम लगाने आएगा?