शाम

चिड़ियों की चहक सहर…सवेरा… ले कर आती है.

 नीड़ को लौटते परिंदे शाम को ख़ुशनुमा बनाते हैं.

ढलते सूरज से रंग उधार लिए सिंदूरी शाम चुपके से ढल जाती.

फिर निकल आता है शाम का सितारा.

पर यादों की वह भीगी शाम उधार हीं रह जाती है,

भीगीं आँखों के साथ.

12 thoughts on “शाम

  1. यादों के पन्नों का कुछ एैसा ही है😞
    पर जो भी हो दिल से दिल तक वाली पंक्तियाँ है

    Liked by 2 people

    1. आभार !!! कभी कभी ऐसा होता . वह दिन नहीं आता जीवन में जिसका इंतज़ार रहता है.

      Like

Leave a reply to Rekha Sahay Cancel reply